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________________ पांस पागलों का एक समूह इकट्ठा होने लगेगा। जो तुम्हारे विरोध में थे, अब धीरे-धीरे तुम्हारी उपेक्षा करने लगेंगे। वे जो तुम्हारी उपेक्षा करते थे, अब धीरे-धीरे तुममें उत्सुक होने लगेंगे। वे जो तुममें उत्सुक थे, धीरे-धीरे तुम्हारी पूजा में संलग्न होने लगेंगे। ऐसा ही सदा हुआ है। तुम घबड़ाओ मत। और अगर तुम मुझसे पूछते हो तो गांववालों का ऐसा कहना तुम्हारे लिए एक अवसर है। वे तुम्हारे लिए एक मौका जुटा रहे हैं, एक कसौटी खड़ी कर रहे हैं, जिस पर तुम अगर खरे उतरे तो तुम धन्यभागी हो जाओगे । रोम-रोम में खिले चमेली सांस- सांस में महके बेला पोर - पोर से झरे मालती अंग-अंग जुड़े जूही का मेला पग-पग लहरे मान सरोवर डगर-डगर छाया कदंब की तुमने क्या कर दिया ? उमर का खंडहर राजभवन लगता है जाने क्या हो गया कि हर दम बिना दीये के रहे उजाला चमके टाट बिछावन जैसे तारों वाला नील दुशाला हस्तामलक हुए सुख सारे दुख के ऐसे ढहे कगारे व्यंग-वचन लगता था कल तक वह अब अभिनंदन लगता है तुम ऐसे जीयो कि तुम्हारे पोर पोर से महके बेला । सांस सांस में खिले चमेली। अंग-अंग में जूही का मेला । तुम ऐसे जीयो। तुम फिक्र छोड़ो वे क्या कहते हैं। वे तुम्हारे हित में ही कहते हैं। अनजाने तुम्हारे हित का ही आयोजन कर रहे हैं। तुम उनकी परीक्षा में खरे उतरो। अगर उतर सके तो किसी दिन तुम कहोगे : जाने क्या हो गया कि हर दम बिना दीये के रहे उजाला ! पत्थर फूल बन जाते हैं अगर तुम सच में पागल हो गये हो । सच में पागल हो जाओ। क पहले उठा लिये हैं, अब लौट मत पड़ना । कायर होते हैं, लौट जाते हैं; साहसी डटे रहते हैं। और संन्यास से बड़ा साहस संसार में दूसरा नहीं है। क्योंकि भीड़ सांसारिकों की है । उसमें संन्यासी हो जाना अचानक भीड़ से अलग हो जाना है। भीड़ राजी नहीं होती किसी को अलग होने 148 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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