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________________ चौथा प्रश्न : मुझे मेरे घर गांव के लोग पागल कहते हैं तब से, जब से मैंने ध्यान करना शुरू किया । और मैं कभी-कभी द्वंद्व में पड़ जाता हूं, बहुत असमंजस में; क्योंकि लोगों की बात पर चलने से मेरी शांति भंग हो जाती है। प्रभु, मेरा पथप्रदर्शन कर मेरा जीवन सफल करें। पू छा है स्वामी अरविंद योगी ने । अब तो और मुश्किल होगी। अब तुम संन्यासी भी हो गये। लोग पागल कहते हैं इससे तुम्हारे मन में चोट क्यों लगती है ? तुम्हारी भी धारणा लोगों के ही जैसी है। तुम्हें भी लगता है कि पागल होना कुछ गलत है। लोग जब कहते हैं, पागल हो गये तो तुम्हारी शांति भंग होती है। तुम्हारे मन में चिंता जागती है। तुम्हारे मूल्य में और लोगों के मूल्य में फर्क नहीं है । मैं तुमसे कहता हूं, धन्यभागी हो कि तुम पागल हो । जब लोग पागल कहें तो उन्हें धन्यवाद देना, उनका अनुग्रह मानना । तुम धन्यभागी हो कि तुम पागल हो, क्योंकि तुम परमात्मा के लिए पागल हुए हो। वे भी पागल हैं। उनका पागलपन पद के लिए है, धन के लिए है। उनका पागलपन सामान्य व्यर्थ की चीजों के लिए है। तुम सार्थक के लिए पागल हुए हो। तुम घबड़ाओ मत। और तुम इससे परेशान भी मत होओ। और अगर तुम्हारी शांति खंडित हो जाती है तो इसका इतना ही अर्थ हुआ कि शांति अभी बहुत गहरी नहीं, छिछली है। किसी के पागल कहने से तुम्हारी शांति खंडित हो जाये ? तो इसका अर्थ हुआ, शांति बड़ी ऊपर-ऊपर है। और शांत बनो, कि सारा जगत तुम्हें पागल कहे तो भी तुम्हारे भीतर लहर पैदा न हो। ऐसे पागल बनो कि कोई तुम्हारी शांति खंडित न कर पाये, कोई तुम्हारी मुसकान न छीन सके। सारी दुनिया भी विपरीत खड़ी हो जाये तो भी तुम्हारा आनंद अखंडित हो और तुम्हारी धारा, अंतर्धारा निर्बाध बहे। ऐसे पागल बनो । अपने गांव के लोगों से कहना, आपकी बड़ी कृपा है, मुझे याद दिलाते हैं। अभी हूं तो नहीं, होने के मार्ग पर हूं। धीरे-धीरे हो जाऊंगा । सब मिलकर आशीर्वाद दो कि हो जाऊं । चल पड़ा हूं, तुम सबके आशीर्वाद साथ रहे तो मंजिल पूरी हो जायेगी । और तुम चकित होओगे, अगर तुम अशांत न होओ, व्यग्र न होओ, उद्विग्न न होओ तो गांव के लोग जो तुम्हें पागल कहते हैं, वही तुम्हें पूजेंगे भी। उन्होंने सदा पागलों को पूजा । पहले पागल कहते हैं, पत्थर मारते हैं, नाराज होते हैं। अगर तुम उतने में ही डगमगा गये तो फिर बात खतम हो गई। तुम अगर डटे ही रहे, तुम अपना गीत गुनगुनाये ही गये, उनके पत्थर भी बरसते रहें, उनके अपमान भी बरसते रहें, और तुम फूल बरसाये ही गये तो आज नहीं कल उनको भी लगने लगता है। आखिर उनके भीतर भी प्राण हैं, उनके भीतर भी चैतन्य सोया है। कितनी देर ऐसा करेंगे? उनको भी लगने लगता है कि कहीं हम कुछ भूल तो नहीं कर रहे ? यह पागल कोई साधारण पागल नहीं मालूम होता । तुम्हारी प्रतिभा, तुम्हारी आभा, तुम्हारा वातावरण धीरे-धीरे उन्हें छुएगा। तुम संक्रामक बन जाओगे। उनमें से कुछ छुपे अंधेरे इधर-उधर आकर तुम्हारे पास बैठने लगेंगे। उनमें से कुछ, जब कोई न होगा, तुम्हारे पैर छूने लगेंगे। फिर धीरे-धीरे उनकी भी हिम्मत बढ़ेगी, फिर तुम्हारे अपनी बानी प्रेम की बानी 147
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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