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________________ मैं अदृश्य दर्शन बन जाऊं मेरा जीवन बिखर गया है तुम चुन लो, कंचन बन जाऊं बिन धागे की सुई जिंदगी सिये न कुछ बस चुभ-चुभ जाये कटी पतंग समान सृष्टि यह ललचाये पर हाथ न आये रीती झोली जर्जर कंथा अटपट मौसम दुस्तर पंथा तुम यदि साथ रहो तो फिर मैं मुक्तक रामायण बन जाऊं मेरा जीवन बिखर गया है तुम चुन लो, कंचन बन जाऊं बुदबुद तक मिटकर हिलोर इक उठ गया सागर अकूल में पर मैं ऐसा मिटा कि अब तक फूल न बना न मिला धूल में कब तक और सहूं यह पीड़ा अब तो खतम करो प्रभु क्रीड़ा इतनी दो न थकान कि जब तुम आओ, मैं दृग खोल न पाऊं मेरा जीवन बिखर गया है तुम चुन लो, कंचन बन जाऊं प्रभु चुनता है, योग्यता अर्जित करो। प्रभु चुनता है, संगीत को जन्माओ। प्रभु चुनता है, तुम समाधिस्थ बनो। प्रार्थना छोड़ो। मांगना छोड़ो। योग्य बनो। पात्र बनो। तुम जिस दिन पात्र बन जाओगे, अमृत बरसेगा। और अपात्र रहकर तुम कितनी ही प्रार्थना करते रहो, अमृत बरसनेवाला नहीं। क्योंकि अपात्र में अमृत भी पड़ जाये तो जहर हो जाता है। 146 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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