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________________ बच्चे जैसा हो जाता है—बड़े नये अर्थों में। ___ तुम कभी पहाड़ गये? पहाड़ कभी चढ़े? गोल-गोल चढ़ता है रास्ता। कई दफे तुम उसी जगह फिर आ जाते हो-थोड़ी ऊंचाई पर आते। वही दृश्य, वही खाई, लेकिन थोड़ी ऊंचाई पर। नीचे तुम देख सकते हो रास्ता। तुम ट्रेन से जाते हो माथेरान, चढ़ने लगती तुम्हारी छोटी-सी गाड़ी; कई बार तुम्हें नीचे की पटरियां दिखाई पड़ती हैं जहां से तुम अभी गुजर गये थोड़ी देर पहले। थोड़े ऊपर आ गये, मगर जगह वही, ऊंचाई बदल गई। संत शिखर पर पहुंच जाता है, बच्चा खाई में खड़ा होता है; लेकिन दृश्य दोनों एक ही देखते हैं। बच्चा अज्ञान के कारण देखता है; संत ज्ञान के कारण देखता है। जान सकता हूं अगर साहस करूं श्रृंखला वह जो पवन में वह्नि में तूफान में है और चल उत्ताल सागर में जान सकता हूं अगर साहस करूं चेतना का रूप वह जिसमें वृक्ष से झर कर मही पर पत्ते गिरते हैं सातवें के बाद और पहले के रंग के पहले अंधेरा ही अंधेरा है शब्द के उपरांत केवल स्तब्धता है गूंज उसकी जतुक सुनते हैं कि सुनते मीन सागर के हृदय के इंद्रियों की स्पर्श रेखा के पार घूमते हैं चक्र अणुओं तारकों परमाणुओं के जिंदगी जिनसे बुनी जाती जिन अगम गहराइयों से भागते हैं · छोड़ कर उनको कहीं आश्रय नहीं मिलता। भागना भर मत। बचपन से भागना भर मत। जीवन की अबोध अवस्था से भागना भर मत। जाग कर देखना, अनुभव करना; भागना किसी चीज से मत। जिस चीज से भी भागोगे उससे कभी मुक्त न हो पाओगे। क्योंकि जिससे भी भाग जाओगे अधूरा अनुभव होगा, अपरिपक्व अनुभव होगा, कच्चा अनुभव होगा। तुम तो जो जीवन दिखाये उसे पूरा-पूरा देख लेना, पूरा कर लेना, पक जाना। और फिर तुम्हें लौट कर देखने की जरूरत न रहेगी; फिर तुम जब छोड़ दोगे एक जगह तो छोड़ दोगे, लौट कर देखोगे भी नहीं। कछ बचा ही नहीं. तमने सब सार-सार ले लिया। जो छट गई जगह, अब वहां कछ बचा ही न था पीछे लौटने को. देखने की कोई बात नहीं। उसकी तुम्हें याद भी न आएगी, स्मरण भी न होगा। तो हर जीवन की स्थिति को ठीक-ठीक देख लेना। अंततः हाथ में, जो तुम बार-बार ठीक-ठीक 'प्रेम, करुणा, साक्षी और उत्सव-लीला 737
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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