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________________ न होगी, क्योंकि जिनके पास आप जाते हैं इनमें से कोई भी सरल नहीं है। ये सब चेष्टारत हैं, प्रयास अभी भी इनका जारी है, भय अभी भी मौजूद है। मैं एक आदमी को जानता हूं, लेकिन मैंने कभी आपसे कहा नहीं है क्योंकि शायद आप मानेंगे भी न। वह राजधानी में ही रहता है. आपके पडोस में ही। आपके महल में कई दफे काम भी कर गया है। गरीब आदमी है, मगर मैं कहता हूं कि अगर तुम सच में ही गुरु की तलाश में हो तो उसके चरण गहो।। ___ सम्राट ने कहा, तो मुझे अब तक पता कैसे नहीं चला? और उसकी किसी को खबर क्यों नहीं है? . उस वजीर ने कहा, वह इतना सरल है कि खबर भी कैसे हो! और वह संसार में लौट आया है, इसलिए भोगी तो उसको गिनती में ही नहीं लेते और योगी उसकी निंदा करते हैं। वह वापिस आ गया है। अब योगी होने का भी दंभ नहीं है उसके पास। सम्राट उसके पास गया। उसे तो कुछ भी दिखाई न पड़े कि इसमें खूबी क्या है! क्योंकि वह बिलकुल वैसा साधारण आदमी दिखाई पड़ा जैसे साधारण आदमी होते हैं। वह अपने वजीर से कहने लगा, मुझे कुछ खूबी नहीं दिखाई पड़ती है। वजीर ने कहा, यही खूबी है। तुम इसी खूबी को जरा गौर से देखो। तुमने कभी आदमी देखा है जो बिलकुल साधारण हो? साधारण से साधारण आदमी भी चेष्टा तो यही करता है कि मैं असाधारण हूं। साधारण से साधारण आदमी भी दंभ तो यही पालता है कि मैं साधारण नहीं हूं। यह आदमी बिलकुल साधारण है। इसकी साधारणता आत्यंतिक है। इसके भीतर विशिष्ट होने की धारणा नहीं रही है। यही इसका संतत्व है। सबके बीच में जीवन सरल है उठो इस एकांत से दामन छुड़ाओ, इस महज शांत से, जो न शक्ति देता है, न श्रद्धा, सिर्फ उदास बनाता है, न, तटस्थ होने लायक कमजोर तुम अभी नहीं हुए लहरें गिनने के दिन भी आ सकते हैं मगर हाथ जब तक पतवार उठा सकते हैं कंठ-स्वर जब तक हैया-हो गा सकते हैं तब तक ऐसी अनंत तटस्थता शर्मनाक है तटस्थता की तुम्हारे मन पर कैसी बुरी धाक है उठो सिमट कर बहते हुए जीवन में उतरो घाट से हाट तक, हाट से घाट तक आओ-जाओ तूफान के बीच में गाओ मत बैठो ऐसे चुपचाप तट पर परमात्मा हैया-हो गा रहा है तुम्हें उसकी आवाज सुनाई नहीं पड़ती! माना कि तुम बहरे हो मगर इतने तो नहीं, और अंधे हो मगर इतने तो नहीं, 'प्रेम, करुणा, साक्षी और उत्सव-लीला। 69
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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