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________________ परमात्मा सब तरफ हैया-हो गा रहा है पतवार चला रहा है। और मैं तुमसे कहता हूं-इस कविता के लेखक ने तो कहा : न, तटस्थ होने लायक कमजोर तुम अभी नहीं हुए-मैं तुमसे कहता हूं, कभी नहीं होओगे। लहरें गिनने के दिन भी आ सकते हैं, ___ मगर हाथ जब तक पतवार उठा सकते हैं मैं तुमसे कहता हूं, कभी नहीं ऐसा होता है कि लहरें गिनने के दिन आयें। तुम सदा ही ऊर्जा से भरे हो; तुम परमात्म-स्वरूप हो; लहरें गिनने के दिन आते ही नहीं। किनारे पर बैठने का भी एक मजा है। मैं तुमसे कहता नहीं कि उसे तुम मत लो; लेकिन किनारे पर बैठे मत रह जाना। जब किनारे पर बैठ कर तुम अपने स्वभाव को पहचान लो, तटस्थ हो कर जब तुम अपने को जान लो, कूटस्थ हो कर जब भीतर की प्रत्यभिज्ञा हो जाये, तो लौट आना, उठा लेना पतवार! मगर हाथ जब तक पतवार उठा सकते हैं, कंठ-स्वर जब तक हैया-हो गा सकते हैं, तब तक ऐसी अनंत तटस्थता शर्मनाक है। और मैं तुमसे कहता हूं, सदा ही हाथ पतवार उठा सकते हैं। और अगर साक्षी के हाथ न उठा सके तो किसके उठायेंगे? क्योंकि साक्षी नहीं उठाता-साक्षी तो देखता है-परमात्मा उठाता है। साक्षी नहीं नाचता-साक्षी तो देखता है-परमात्मा नाचता है। लेकिन अब वह परमात्मा को रोक नहीं रखता है। वह कहता है, नाचो; हैया-हो करना है हैया-हो करो। अब जैसा हो हो। इसी को अगर तुम ठीक से समझो तो अष्टावक्र बार-बार कहते हैं : जो होता है हो; जैसा होता है वैसा हो-बालवत। खयाल रखना, छोटे बच्चे जैसा होना साक्षी के पार चले जाना है। फिर लीला में उतर आना है। चलो प्रेम से; रुको करुणा पर; बढ़ो साक्षी तक। साक्षी-भाव में रुक जाने की, ठहर जाने की बड़ी प्रबल आकांक्षा पैदा होती है। खयाल रखना। क्योंकि बड़ा सुखद है साक्षी-भाव; परम शांत है; कोई लहर नहीं उठती; जन्मों-जन्मों का सताया हुआ आदमी जब वहां पहुंचता है तो सोचता है आ गये! मगर मैं तुमसे कहता हूं, अभी भी नहीं आये। अगर सोचा कि आ गये तो अभी भी नहीं आये। यह आने का जो भाव पैदा होता है, यह बहुत-बहुत जन्मों की पीड़ा, चक्कर, उपद्रव, शोरगुल के कारण होता है। यह उसकी प्रतिक्रिया है। थोड़ी देर जब बैठोगे साक्षी की छाया में, विश्राम कर लोगे थोड़ा-अष्टावक्र कहते हैं चित्तविश्रांति-जब चैतन्य में विश्राम कर लोगे, विराम कर लोगे, फिर ऊर्जा उठेगी। विश्राम का अर्थ ही होता है कि तुम फिर श्रम करने को तैयार हो गये। जिस विश्राम से श्रम करने की क्षमता न आये वह विश्राम नपुंसक है। वह विश्राम ही नहीं है। तुम रात भर सोये, तुम कहते हो रात गहरी नींद आई, बड़ा विश्राम हुआ। इसका प्रमाण क्या है? इसका प्रमाण है कि सुबह तुम गड्डा खोदने लगे, कि लकड़ियां काटने लगे। तुम कहते हो रात भर खूब विश्राम किया, अब ऊर्जा भर गई, अब कुछ करने का मन होता है। साक्षी विश्राम है। लेकिन विश्राम का प्रमाण क्या कि तुम वस्तुतः विश्राम को उपलब्ध हुए? जो 70 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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