SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गई, अब बैठे हैं, न कोई तरंग उठती है, न कोई गीत, न कोई गुनगुनाहट, न कोई नृत्य, न कोई वीणा बजती है, कुछ भी नहीं होता है। अब कुछ होता ही नहीं है। अब बस बैठे हैं; अब बस बैठे हैं। और यह अब रहेगा अनंत काल तक, अब इससे लौटना संभव नहीं है। यह तो हो गई बात। ___जैन कहते हैं, बस पहुंच गये। अब लौटना संभव नहीं है। यह तो फांसी लग गई। अगर इसे गौर से देखोगे तो यह तो संसार से क्या छूटे, और मुश्किल में पड़ गये। रसेल ने ठीक लिखा है कि इससे तो मैं नरक जाना पसंद करूंगा; कम से कम वहां से छूटने का उपाय तो है। कम से कम वहां कुछ तो होता होगा; गपशप तो चलती होगी; समाचार-पत्र तो निकलते होंगे; कुछ होता तो होगा! लेकिन यह मोक्ष तो बड़ा जड़ मालूम पड़ता है। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं, मोक्ष के बाद भी एक अवस्था है; वही परमात्मा की पूरी अवस्था है। वही कृष्ण की दशा है; वहां लीला-उत्सव शुरू हो जाता है। तुम्हारी धारणा यह है कि लीला-उत्सव तो अज्ञानी के लिए है। यह तो अज्ञानी है जो अभी राग-रंग कर रहा है। तो तुमने अभी राग-रंग का पूरा अर्थ नहीं जाना। अज्ञानी करने की कोशिश करता हो भला, हो कहां पाता है? राग-रंग में ही तो कांटे चुभ जाते हैं; फूल खिलते कहां? आशा है, सपना है; होता कहां है? देखते हो भोगी को, कुछ सुखी दिखाई पड़ता है ? चेष्टा कर रहा है; चेष्टा में ही दबा जा रहा है, टूटा जा रहा है, बिखरा जा रहा है। नाचना चाहता है, नाच कहां पाता है? हजार बाधायें आ जाती हैं। सोचता है, कल नाचूंगा, परसों नाचूंगा। बाधाओं का अंत नहीं होता; रोज बाधायें बढ़ती जाती हैं। और आखिर में पाता है कि यह तो मौत द्वार पर खड़ी हो गई। नाचने का समय ही न मिला; तैयारी ही करने में समय बीत जाता है। तैयारी कभी हो नहीं पाती। भोगी भोग कहां पाता? ___ उपनिषद कहते हैं : तेन त्यक्तेन भुंजीथा; उन्होंने ही भोगा जिन्होंने छोड़ा। यह किसी भोग की नई धारणा की बात है। जिसने पकड़ा वह क्या खाक भोगेगा? वह भोगता कहां दिखाई पड़ता है? फिर योगी हैं; वे डर गये भोग से और भाग कर खड़े हो गये। अब वे चलते ही नहीं; हिलते ही नहीं। उनको तुम टस से मस नहीं कर सकते; वे अपनी जगह पत्थर हो कर बैठ गये हैं। वे कहते हैं, हिलने में डर है; हिल गये, कंप गये, लहर आ गई; फिर क्या होगा? फिर संसार शुरू हो जायेगा। यह तो भयभीत अवस्था है और भय में अगर कोई ठहर भी गया है तो इस ठहरने में बहुत आनंद नहीं हो सकता। हो सकता है सांसारिक दुख न हो, सांसारिक अशांति न हो, लेकिन इस ठहरने में तो एक तरह की जडता होगी। गत्यात्मकता खो गई. गति खो गई। धार नहीं बहती अब. रस नहीं बहता अब। नहीं, आखिरी अवस्था में जब तुम सबसे पार हो गये, तब फिर एक नृत्य की दशा है-वह जो भोगी चाहता है और नहीं कर पाता और वह जो योगी चाहता है और भोग में कहीं उतर न जाये, इस डर से रुका रहता है, और नहीं कर पाता है। भोगी और योगी के पार कोई दशा होनी चाहिए जहां योगी और भोगी दोनों की आकांक्षाएं पूरी हो जाती हैं। अन्यथा जगत में कोई अर्थ न होगा, अर्थहीन होगा जगत। भोगी अकड़ा खड़ा है डर के मारे, वह भी नहीं भोग पाता; योगी अकड़ा खड़ा है। भोगी भाग-दौड़ में है, ज्वर में है; वह भी नहीं भोग पाता; भाग-दौड़ के कारण नहीं भोग पाता। फुरसत कहां? और योगी डर के मारे नहीं भोग पाता है। फुरसत तो बहुत है। चौबीस घंटे खड़ा है। समझ में नहीं आता क्या करें। माला फेरता है; कुछ समझ में नहीं आता तो माला ही फेरता रहता है। कुछ न 62 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy