SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यावत् स्पृहा यावत् निर्विचार दशास्पदम्। और जहां-जहां जब तक तृष्णा है तब तक अविवेक रहेगा। तावत् जीवति च हेयोपादेयता संसार विटपांकुरः। और तब तक वह जो संसार का मूलबीज है, अंकुर जिससे पैदा होता है, वह भेद करने की बुद्धि भी रहेगी कि यह ठीक और यह गलत। नीति और धर्म का यही भेद है। नीति कहती है : यह ठीक, यह गलत। और धर्म कहता है : जो है सो है; न कुछ गलत न कुछ ठीक। ___ अक्सर तुम नैतिक आदमी को धार्मिक आदमी समझ लेते हो और बड़ी भूल में पड़ जाते हो। नैतिक आदमी सज्जन है, संत नहीं। सज्जन का अर्थ है जो ठीक ठीक है, वही करता है। संत का अर्थ है जिसे अब ठीक और गलत कुछ भी न रहा; जो होता है, वही होने देता है। अब कुछ करता नहीं। सज्जन तो कर्ता है, संत अकर्ता है। अक्सर सज्जन को ही संत समझने की भूल हो जाती है। इसलिए तुम सज्जनों को महात्मा कहने लगते हो। महात्मा बड़ी और बात है। पश्चिम का एक बहुत बड़ा विचारक लेन्झा देलवास्तो पूरब आया-गुरु की खोज में। सुनी थी उसने खबर रमण महर्षि की तो वहां गया. लेकिन वहां कछ उसे बात जंची नहीं। उसने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मैं वहां गया, लेकिन वहां मुझे कुछ बात जंची नहीं। क्योंकि वहां कुछ भेद ही न मालूम पड़ा कि अच्छा क्या है, बुरा क्या है; क्या होना चाहिए, क्या नहीं होना चाहिए। रमण से उसने पूछा भी कि मैं क्या करूं, क्या न करूं तो रमण ने यह कहाः 'देखो करने में मत पड़ो, साक्षी बनो!' साक्षी! फिर-फिर उसने पूछा कि मुझे कुछ ठीक-ठीक दिशा-निर्देश दें कि मैं चरित्र को कैसे निर्माण करूं, शुभ वृत्ति कैसे बढ़े? क्योंकि शुभ हुए बिना तो कोई कभी परमात्मा तक पहुंच नहीं सकता। और रमण ने कहाः परमात्मा की बात ही छोड़ो। वहां तुम पहुंचे ही हुए हो। शुभ भी पहुंचा हुआ है, अशुभ भी पहुंचा हुआ है। सब वहीं पहुंचे हुए हैं; क्योंकि अशुभ भी उसके बिना जी नहीं सकता; शुभ भी उसके बिना जी नहीं सकता। बुरे में भी वही बैठा है। रावण में भी वही और राम में भी वही। तो तुम तो साक्षी बनो और कर्ता छोड़ो। __उसने लिखा कि आदमी तो भले लगे, लेकिन जमे नहीं। वहां से वह गया वर्धा, वहां महात्मा गांधी उसे जमे। उसने लिखा कि यह है गुरु कि एक-एक बात को कहता है कि चाय न पीयो, कि सिगरेट न पीयो, कि कितने बजे उठो, कि कितने बजे बैठो, कि कितने कपड़े पहनो और कितने कपड़े न पहनो, कैसा भोजन करो, कैसा भोजन न करो–छोटी-छोटी चीज से ले कर, चटनी से ले कर ब्रह्म तक सारा विचार! चटनी भी नीम की खाना, गांधी जी कहते थे, ताकि स्वाद मरे। यह बात जंची। भोजन में स्वाद मत लेना, रस मत लेना। इसलिए किसी चीज में सुख मत लेना। तो बिना नमक की खा लेना। अगर उसमें भी थोड़ा स्वाद आता हो तो नीम की चटनी मिला लेना।...ये जंचे। गुरु बना लिया गांधी को। रमण को छोड़ कर गांधी को गुरु बना लिया! तो आश्चर्य मत करना; तुम्हारी भी संभावना यही है। लेन्झा देलवास्तो ने ही कुछ ऐसा नहीं कर लिया; तुम्हारे भी मन की समझ इतनी ही है। तुम भी रमण को न पहचान सकोगे। रमण की तस्वीरें कितने घरों में लगी हैं? रमण की कौन चिंता करता है! साक्षी आया, दुख गया 43
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy