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________________ से कोई धारणा ही न बनायी थी। पांच मिलें तो ठीक, पचास मिलें तो ठीक, पचास करोड़ मिल जायें ठीक; न मिलें तो ठीक। पास हैं जो वे भी खो जायें तो ठीक। उसके जीवन में किसी चीज से कोई लहर नहीं उठती है— न क्षोभ की, न आश्चर्य की । ज्ञानी प्रतिपल बिना किसी अतीत को अपने मन में लिये जीता है। इसलिए तुलना का उसके पास कोई स्थान नहीं होता । तुम ज्ञानी को न तो क्षुब्ध कर सकते हो और न आश्चर्यचकित। ऐसी कोई घटना नहीं है जिस पर ज्ञानी को आश्चर्य हो । क्योंकि ज्ञानी मानता है, यह जगत इतना महान रहस्यपूर्ण है कि आश्चर्य हो तो इसमें आश्चर्य क्या ? इस बात को खयाल में रखना - आश्चर्य हो तो इसमें आश्चर्य क्या? यह सारा जगत आश्चर्यों से भरा है। एक-एक पत्ती पर आश्चर्य ही आश्चर्य लिखा है। एक-एक फूल रहस्य की कथा है। यहां सभी चीजें अनजानी हैं। फिर इसमें आश्चर्य क्या ? किसी ने हाथ से भभूत निकाल दी, तुम बड़े आश्चर्यचकित हो गये । इतना विराट संसार शून्य से निकल रहा है और तुम आश्चर्यचकित नहीं हो ! और किसी मदारी ने हाथ से भभूत निकाल दी और तुम आश्चर्यचकित हो गये ! और तुम एकदम बाबा के पैर में गिर पड़े कि चमत्कार ! जाता चमत्कार प्रतिपल हो रहे हैं। एक छोटा-सा बीज तुम डालते हो जमीन में; एक विराट वृक्ष बन बीज को फोड़ते, कुछ भी न मिलता; न वृक्ष मिलता, न फूल मिलते, न फल मिलते; कुछ भी न था, खाली था, शून्य था । उस शून्य से इतना बड़ा विराट वृक्ष पैदा हो गया। इस पर करोड़ों बीज लग जाते हैं। एक बीज से करोड़ों बीज लग जाते ! वनस्पतिशास्त्री कहते हैं कि एक बीज सारी दुनिया जंगलों से भर सकता है। सिर्फ एक बीज ! और चमत्कार क्या चाहते हो ? तुम्हारे घर बच्चा पैदा हो जाता है— तुमसे पैदा हो जाता है ! और तुम्हें चमत्कार नहीं होता ! तुम जैसा मुर्दा आदमी! तुम्हें अपने ही पैरों में गिरना चाहिए कि धन्य बाबा ! मुझ जैसा मुर्दा आदमी और एक जीवित बच्चा पैदा हो गया। नहीं, तुम चमत्कार क्षुद्र बातों में देखते हो, क्योंकि तुम्हें विराट चमत्कार दिखाई नहीं पड़ रहे । इस जीवन में देखते हो, उदास से उदास, मुर्दा से मुर्दा आदमी में भी परमात्मा मौजूद है — और तुम्हें चमत्कार नहीं दिखाई पड़ता ! हर आंसू के पीछे मुस्कुराहट छिपी है और तुम्हें चमत्कार नहीं दिखाई पड़ता ! हर जीवन के पीछे मृत्यु खड़ी है और तुम्हें चमत्कार दिखाई नहीं पड़ता ! - यहां जो हो रहा है, वह सभी चमत्कारपूर्ण है। यहां ऐसा कुछ हो ही नहीं रहा है जिसमें चमत्कार न हो। इसलिए ज्ञानी को कोई चीज आश्चर्य नहीं करती; क्योंकि सभी आश्चर्य है तो अब आश्चर्य क्या करना ! आश्चर्य ही आश्चर्य घट रहे हैं। प्रतिपल अनंत आश्चर्यों की वर्षा हो रही है। इस बोध के कारण ज्ञानी को कोई चीज आश्चर्य नहीं करती। और, किसी चीज से क्षोभ नहीं होता है। क्योंकि ज्ञानी जानता है कि मेरे किये कुछ नहीं होता है। मेरे मांगे कुछ नहीं होता। मैं तो सिर्फ देखने वाला हूं; जो होता है उसे देखता रहूंगा। उसका रस तो एक बात में है, साक्षी में, कि जो होता है देखता रहूंगा। जो भी हो, इससे क्या फर्क पड़ता है, क्या होता है ! कभी दुख होता है, कभी सुख होता है; कभी धन मिलता है, कभी निर्धनता मिलती है; कभी सम्मान, कभी अपमान - वह देखता रहता है। उसने तो देखने में ही सारा रस पहचान लिया। अब क्षुब्ध नहीं होता है। धर्म अर्थात सन्नाटे की साधना 213
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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