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________________ मत बढ़ाओ तो वह लंबे बाल बढ़ा लेगा। भीड़ कहती है, स्नान करो तो वह स्नान न करेगा। हिप्पियों को देख रहे हैं। उन्होंने सारे भीड़ के मापदंड तोड़ दिये। वे ऐसे जीएंगे जैसा भीड़ चाहती है कोई न जीए; मगर अभी भी भीड़ से ही प्रभावित हैं। उनका भी आदेश आता है भीड़ से ही। भीड़ स्नान करती है तो वे स्नान नहीं करते; भीड़ सुंदर कपड़े पहनती है तो वे गंदे कपड़े पहनते हैं। ___ मैंने ऐसा भी सुना है कि अमरीका में ऐसी दूकानें भी खुल गयी हैं जहां कपड़े गंदे तैयार करके बेचे जाते हैं। क्योंकि हिप्पियों की भी तो मांग है! नया कपड़ा तो हिप्पी पहन नहीं सकता, क्योंकि वह ताजा, साफ-सुथरा मालूम पड़ता है। तो दूकानें हैं जहां उनको गंदे करके, चीर-फाड़ कर, खराब करके, पुराना ढंग दे कर बेचते हैं। उनके विज्ञापन मैंने पढ़े हैं। तब खरीदेगा हिप्पी कि ठीक, अब ठीक है। बासा, पुराना, गंदा, कई मौसम देख चुका, घिसा-पिटा, तब! मेरे एक मित्र हैं; नेपाल में उनकी फैक्टरी है। उस फैक्टरी में वे एक ही काम करते हैं : नयी मूर्तियां बनाते हैं, एसिड डाल कर उनको खराब करके जमीन में गड़ा देते हैं। साल-छः महीने बाद उनको जमीन से निकाल लेते हैं। कोई पांच सौ साल पुरानी बताते हैं, कोई हजार साल पुरानी। जो मूर्ति पांच रुपये में नहीं बिकती, वह पांच हजार में बिकती है। उनका धंधा ही यही है। __उनके घर एक बार मेहमान हुआ तो मैंने कहा कि तुम इतनी पुरानी मूर्तियां ले कहां से आते हो? उन्होंने कहाः ‘लाता कौन है ? पागल हुए हैं आप? हम बनाते हैं।' मैंने कहाः पुरानी मूर्ति कैसे बनाते होओगे? उन्होंने कहाः आपकी समझ में न आयेगा। इसमें बड़ा राज है। सन इत्यादि सब हम लिखते हैं इसमें पुराना। पुरानी भाषा आंकते हैं। फिर एसिड डालकर खराब करते हैं। किसी का हाथ तोड़ दिया, किसी की नाक तोड़ दी, फिर उसको जमीन में गड़ा दिया। वह जमीन में गड़ी साल-छः महीने में पुरानी शक्ल ले लेती है। उसको बड़े से बड़े पारखी ही पहचान सकते हैं कि वह पुरानी नहीं है। वैसे पांच रुपये में बिकती; अब वह पांच हजार में बिक सकती है। एंटीक हो गयी! अब उसकी कीमत बहुत बढ़ गयी। बहुत पुरानी है! हिप्पी विपरीत जीता है। लेकिन ज्ञानी न तो समाज के अनुकूल जीता है न प्रतिकूल। ज्ञानी तो स्वानुकूल जीता है; स्वच्छंद-स्वयं के छंद से जीता है। तुमसे मेल खा जाये तो ठीक, तुमसे मेल न खाये तो ठीक। तुम्हारी चिंता नहीं करता; तुम्हारे हिसाब से नहीं चलता। ___ तो न तो तुम उससे कह सकते कि वह उदंड है, न तुम कह सकते वह दीन है। न तो वह परंपरावादी है और न क्रांतिकारी है। ज्ञानी तो अपने आत्मबोध से जीता है। 'उसके जीवन में न तो क्षोभ है और न आश्चर्य।' यह बहुत महत्वपूर्ण बात है। क्षोभ कब होता है? तुम दस हजार रुपये पाना चाहते थे और दस न मिले तो क्षोभ होता है। तुम्हें दस भी मिलने की आशा न थी और दस हजार मिल गये तो आश्चर्य होता है। जो नहीं होना था हो जाता है, तो बड़ा आश्चर्य से भर जाता है मन। जो होना था और नहीं होता, तो बड़ा क्षोभ होता है। तुम्हारी अपेक्षा के प्रतिकूल हो जाता है तो तुम दुखी होते हो। और छप्पर फोड़ कर वर्षा हो जाती है स्वर्ण-अशर्फियों की, तो तुम गदगद हो जाते हो। ज्ञानी के जीवन में न तो आश्चर्य है न क्षोभ है। ज्ञानी तो जो होता है उससे अन्यथा चाहता ही नहीं था। उसने अन्यथा सोचा नहीं था. विचारा नहीं था। उसने और कोई सपने न देखे थे। उसने पहले 212 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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