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________________ लेकिन हमारी तरफ से ठीक लगता है, क्योंकि हम देखते हैं, महावीर का क्रोध खो गया, हिंसा खो गयी। तो तत्क्षण हम नाम देते हैं : अहिंसक, महाकरुणावान ! ये नाम हमारे हैं; और भ्रांत हैं। हम भ्रांत हैं तो हमारी दी हुई सारी व्याख्याएं भी भ्रांत होती हैं। ___ महावीर की तरफ से देखने पर द्वंद्व चला गया–हिंसा-अहिंसा का, प्रेम-घृणा का, राग-द्वेष का। सारा द्वंद्व चला गया। जहां-जहां द्वंद्व है वहां-वहां निर्द्वद्वता की स्थिति आ गयी। तो सूत्र कहता है : ऐसे मनुष्य में न हिंसा है न करुणा; न उदंडता है और न दीनता है। ऐसा व्यक्ति न तो अहंकारी होता है और न निरहंकारी होता है। ऐसा व्यक्ति विनम्र भी नहीं होता, दंभी भी नहीं होता। इसलिए तुम्हें बड़ी कठिनाई होगी ऐसे व्यक्ति को पहचानने में। ऐसा व्यक्ति न तो किसी को दबाता और न किसी से दबता। ____ तुम दो तरह के आदमी जानते होः दबाने वाले और दबने वाले। तुम आदमी जानते हो आज्ञाकारी और उदंड, परंपरा को मानने वाले और परंपरा का खंडन करने वाले, आस्तिक और नास्तिक। ऐसे तुम आदमी जानते हो। बुद्ध या महावीर न तो आस्तिक हैं न नास्तिक; न तो परंपरा के अंधे अनुयायी हैं, न क्रांतिकारी हैं; न तो आज्ञा मान कर चलते समाज की, न अवज्ञा करते हैं। ये बातें ही व्यर्थ हो गयीं। ये तो अपने भीतर की सहजता से जीते हैं। इस सहजता से तुम्हारा मेल खा जाये तो तुम्हें लगेगा, समाज की आज्ञा मानते हैं। इससे मेल न खाए तो तुम्हें लगेगा समाज की अवज्ञा करते हैं। लेकिन ये तुम्हारी धारणाएं हैं। ऐसे व्यक्ति तो अपनी मौज से जीते हैं_स्वच्छंद जीते. सहज भाव से। उनकी स्फरणा आंतरिक है। बहत मौकों पर तमसे मेल खा जाता है: बहत मौकों पर तमसे मेल नहीं खाता। लेकिन तमसे न तो मेल बिठाने की चिंता है और न तुमसे तालमेल तोड़ने की चिंता है। यहीं तुम फर्क समझ लेना। परंपरावादी वह है, जो हमेशा कोशिश करता है : जो सब चल रहे हैं, भेड़चाल, वैसी ही चाल मेरी रहे; जरा भी अन्यथा न हो जाऊं। अन्यथा अड़चन आती है; लोग चौंक कर देखने लगते हैं। जैसे कपड़े लोगों ने पहने हैं, वैसे ही मैं पहनूं; जैसे बाल उन्होंने कटाये वैसे मैं कटाऊं; जो बातें वे करते हैं वही बातें मैं करूं; जिस ब्रांड की सिगरेट पीते हैं वही मैं पीऊं; जिस फिल्म को देखने जाते हैं वही मैं देखू; जो किताब पढ़ते हैं वही मैं पढूं। लोगों से अलग होना ठीक नहीं, क्योंकि भीड़ नाराज होती है कि अच्छा, तो तुम व्यक्ति होने की चेष्टा कर रहे, तो तुम विशिष्ट होने की चेष्टा कर रहे! भीड़ पसंद नहीं करती। ____ भीड़ कहती है : तुम भीड़ के साथ रहो। भीड़ को इससे बड़ी तृप्ति मिलती है कि सब उसके साथ हैं। भीड़ बड़ी डरी है। देखा भेड़ों को चलते-घसर-पसर एक-दूसरे के साथ! ऐसा आदमी चलता है। अगर कोई भेड़ अलग चलने लगे तो पूरी भीड़ उसके विपरीत हो जाती है। यह एक बात हुई। फिर एक दूसरा आदमी है, जो इस भेड़चाल से घबरा जाता है और जो प्रतिक्रिया में वही करने लगता है, जो भीड़ कहती है मत करो; वही करने लगता है जिसका भीड़ में विरोध है। भीड़ से विपरीत करने लगता है। खयाल करना, यह दूसरा आदमी भी भीड़ से ही प्रभावित हो रहा है; जैसा भीड़ कहती है, उससे विपरीत करने लगता है, लेकिन भीड़ के ही अनुसार चलता है। अनुकूल नहीं करता, प्रतिकूल करता है। भीड़ कहती है, शराब मत पीयो तो वह शराब पीयेगा। भीड़ कहती है, लंबे बाल धर्म अर्थात सन्नाटे की साधना 211 -
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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