SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करोगे, कहोगे'तृप्त हुआ, मैं तृप्त हुआ!' बौद्धिक रूप से इसे तुम समझ भी ले सकते हो, लेकिन इससे तुम इति निश्चयी न हो जाओगे। इसलिए बार-बार अष्टावक्र दोहराएंगे इन शब्दों के समह को-'इति निश्चयी', ऐसा जिसने निश्चयपूर्वक जाना। इससे तुम यह गलती मत समझ लेना कि अष्टावक्र तुमसे यह कह रहे हैं कि तुम इसे खूब दोहराओ तो निश्चय पक्का हो जाए। बार-बार दोहरा-दोहरा कर, बार-बार मन में यही भाव उठा-उठाकर निश्चय कर लो, दृढ़ता कर लो तो बस ज्ञान हो जाएगा। _ नहीं, इस तरह निश्चय नहीं होता। तुम झठ को कितना ही दोहराओ तुम्हें झूठ सच जैसा भी मालूम पड़ने लगे, तो भी सच इस तरह पैदा नहीं होता। बहुत बार दोहराने से भ्रम पैदा होता है ऐसा लगने लगता है कि अनुभव होने लगा। अगर बैठे-बैठे तुम रोज दोहराते हो कि मैं देह नहीं, मैं देह नहीं मैं देह नहीं-ऐसा दोहराते रहो वर्षों तक, आखिर मन पर लकीर तो पड़ेगी, बार-बार लकीर पड़ेगी। रसरी आवत जात है, सिल पर पड़त निशान! वह तो पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं, कोमल-सी रस्सी के आते-जाते। तो मन पर निशान पड़ जाएगा, उसको तुम निश्चय मत समझ लेना। वह तो बार-बार दोहराने से पड़ गई लीक-लकीर है। उससे तो भ्रांति पैदा होगी। तुम्हें ऐसा लगने लगेगा कि अब मैं जानता हूं कि मैं देह नहीं। लेकिन तुमने अभी जाना नहीं, तो जानोगे कैसे? अभी जाना ही नहीं, तो निश्चय कैसे होगा? तो जब अष्टावक्र कहते हैं, ऐसा जिसने निश्चयपूर्वक जाना, तो उनका यह अर्थ नहीं है कि तम अपने को आत्म-सम्मोहित कर लो। ऐसा बहुत से लोग इस देश में कर रहे हैं। अगर तुम संन्यासियों के आश्रम में देखो तो बैठे दोहरा रहे हैं कि मैं देह नहीं, मैं ब्रह्म हूं! लेकिन क्या दोहरा रहे हो? अगर मालूम पड़ गया तो बंद करो दोहराना। दोहराना ही बताता है कि अभी पता नहीं चला। तो दो-चार दिन के लिए छोड़ो फिर देखो। दो-चार दिन छोड़ने को भी वे राजी नहीं होंगे। क्योंकि वे कहेंगे, इससे तो निश्चय में कमी आ जाएगी। यह भी कोई निश्चय हुआ कि दो-चार दिन न दोहराया तो बात खतम हो गई? यह तो निश्चय न हुआ, यह तो तुम किसी भ्रम को सम्हाल रहे हो दोहरा–दोहरा कर। अडोल्फ हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है सच और झूठ में ज्यादा फर्क नहीं। बहुत बार दोहराए गए झूठ, सच मालूम होने लगते हैं। और अडोल्फ हिटलर ठीक कहता है, क्योंकि यही उसने जीवन भर किया। झूठ दोहराए, इतनी बार दोहराए कि वे सच मालूम होने लगे। ऐसे झूठ जिन पर पहली बार सुन कर उसके मित्र भी हंसते थे, वे भी सच मालूम होने लगे। दोहराए चले जाओ, विज्ञापन करो; दूसरों के सामने दोहराओ, अपने सामने दोहराओ; एकांत में, भीड़ में दोहराए चले जाओ-तो तुम अपने आस-पास एक धुआं पैदा कर लोगे। एक लकीर तुम्हारे आस-पास सघन हो जाएगी। उस लकीर में तुम निश्चय मत जान लेना। जब अष्टावक्र कहते हैं, निश्चयपूर्वक, तो उनका अर्थ अडोल्फ हिटलर वाला अर्थ नहीं। उनका अर्थ है : सत्य को अनुभव से जान कर, दोहरा कर नहीं दोहराना तो भूल कर मत। मंत्र तो सभी धोखा देते हैं। मंत्र तो धोखा देने के उपाय हैं। उनसे आंखें धुंधली हो जाती हैं। बार-बार दोहराने से शब्द
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy