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________________ कारण नहीं । कारण की तो जरूरत ही नहीं है। परमात्मा तो तुम हो ही, अन्यथा होने का उपाय नहीं है। लेकिन जब मैं यह कह रहा हूं तब भी तुम सुनोगे यह संदिग्ध है; क्योंकि सुन लो तो तुम अभी हो जाओ। तुम सुनना नहीं चाहते। तुम्हें कर्ता होने में अभी रस है । तुम कहते हो, कर्ता नहीं......... तो मैं ही कर्ता- भर्ता हूं अपने परिवार का तुम पत्नी के सामने कैसे अकड़ कर खड़े हो जाते हो कि पति स्वामी, छ्र चरण! और वह कहती है, मैं तुम्हारी दासी! और तुम बेटे से कहते हो कि देख, मैं तुझे पाल कर बड़ा कर रहा हूं भूल मत जाना! और जब तुम धन कमा लेते हो, तो तुम चाहते हो हर कोई कहे कि ही, हो साहसी, हो संघर्षशील! और जब तुम चुनाव जीत जाओ और किसी पद पर पहुंच जाओ तो तुम यह कहने में मजा न पाओगे कि मैं साक्षी हूं फिर मजा क्या रहा? हराया, जीते किसी को गिराया - इसमें सब रस है । मैं सुना, मुल्ला नसरुद्दीन कुछ वर्षों लंदन में रहता था। दिल्ली में रहने वाले उसके छोटे भाई एक दिन उससे फोन पर बातचीत की। हाल-चाल पूछने के बाद छोटे भाई ने कहा भैया, मां कह रही हैं कि पांच सौ रुपये भेज दो। मुल्ला ने कहा: क्या कहा? कुछ सुनाई नहीं दे रहा । अब तक सब सुनाई दे रहा था। अचानक बोला : कुछ सुनाई नहीं दे रहा। छोटे ने फिर भी चिल्ला कर कहा, मां कह रही हैं पांच सौ रुपए भेज दो। मुल्ला ने फिर भी वही उत्तर दिया। छोटे ने और भी चिल्ला कर कहा, पर बड़े ने मुल्ला ने, फिर भी वही जवाब दिया। इतने में आपरेटर, जो दोनों की बातें सुन रहा था, बोला अरे भाई, आपको सुनाई कैसे नहीं दे रहा? आपकी मां कह रही हैं कि पांच सौ रुपए भेज दो ! मुल्ला ने कहा: तुझे अगर सुनाई दे रहा है तो तू ही क्यों नहीं भेज देता? सुनाई तो सभी को दे रहा है, लेकिन वह पांच सौ रुपए भेजना ! मैंने सुना है, एक गांव में एक धनपति था - बडा कंजूस ! बामुश्किल दान देता था। और बादबाद में वह बहरा भी हो गया। लोगों को तो शक था कि वह बहरा इसीलिए हो गया कि लोग दान मांगने आएं तो वह कान पर हाथ रख ले, वह कहे कि कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा । पर एक आदमी आया। वह भी खूब चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था। उसने कहा कि भई बाएं तरफ से कह, मुझे दाएं कान में तो कुछ सुनाई पड़ता नहीं| उसने बाएं कान में कहा, बड़ी हिम्मत करके कहा कि सौ रुपए दे तो वह लाख सकता था; लेकिन कंजूस है, कृपण है। सौ रुपए सुन कर उसने कहा कि नहीं भई, बाएं कान में ठीक सुनाई नहीं पड़ रहा, तू दाएं में कह। दाएं तक आते हुए उसने सोचा कि अब इसको सुनाई ही नहीं पड़ रहा न सौ सुनाई पड़ रहे हैं, तो क्यों न बदल लूं उसने कहा, दो सौ रुपए। उसने कहा, फिर बाएं वाली बात ही ठीक है। फिर जो बाएं से सुनाई पड़ा, वह ही ठीक है। सुनाई तो सब पड़ रहा है, बहरे बने बैठे हो ! क्योंकि सुनो तो जीवन में एक क्रांति घटेगी। और
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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