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________________ लिया जहां से यहूदी आया है-फला-फला यहूदी के घर में वह तो इसी का नाम है, यहूदी का उसकी खाट के नीचे जहां वह रोज रात सोता है, सपने देखता है, धन गड़ा है। अब हम कोई ऐसे पागल हैं कि सपनों में उलझ जाएं! और कहां खोजें? उस गांव में इस नाम के पचासों यहूदी होंगे आधा गांव इस नाम का होगा। कोई के घर में घुस कर खोदेंगे कैसे? तू भी खूब पागल है, मूरख! लेकिन यह सुन कर यहूदी तो बोला : नमस्कार, धन्यवाद! वह भाग।। जा कर खाट के नीचे खोदा, धन वहां था। जिसे हम खोजते फिर रहे हैं कहीं और, वह हमारे भीतर है। हम उसे लेकर ही आए हैं। वह हमारा स्वभाव है। तुम जैसे हो, वैसे ही, इसी क्षण, एक क्षण बिना गंवाए, निर्वाण को उपलब्ध हो सकते हो! कुछ करने की बात होती तो समय लगता, तो चेष्टा करनी पड़ती। महात्मा बनना हो तो समय लगेगा, परमात्मा बनना हो तो समय लगने की जरा भी जरूरत नहीं। इसे मुझे फिर से दोहराने दो : महात्मा बनना हो तो बहुत समय लगेगा जन्म-जन्म लगेंगे; क्योंकि महात्मा का अर्थ है : बुराई को काटना है, भलाई को सम्हालना है, अच्छा करना है, बुरा छोड़ना है। यह छोड़ना वह पकड़ना, बड़ा समय लगेगा। और फिर भी तुम महात्मा हो पाओगे, इसमें संदेह है। क्योंकि कोई महात्मा हो ही नहीं सकता जब तक उसे भीतर का परमात्मा न दिखाई पड़ जाए। तब तक सब थोथा है, धोखा है, ऊपर-ऊपर है, आवरण है। असली क्रांति महात्मा होने की नहीं है। असली क्रांति तो इस उदघोषणा की है कि मैं परमात्मा हूं! अहं ब्रह्मास्मि! और यह इस क्षण हो सकता है। अगर न हो, तो केवल इतना ही है कि तुम समझ नहीं पाए स्थिति को। देह तुम नहीं हो, मन तुम नहीं हो इतनी बात तुम्हारे स्मरण में गहरी हो जाए तुम द्रष्टा हो! 'अब मैं जैसा हूं वैसा ही स्थित हो' अद्य अहं एवं एक आस्थितः। इसे खूब गुनगुनाना| इस बात को जितना पी जाओ, उतना शुभ है। कभी-कभी बैठे-बैठे शांत इस बात का स्मरण करना कि मैं जैसा हूं वैसा ही अपने में स्थित प्रभु में स्थित हूं। कभी अंधेरी रात में उठ कर बिस्तर पर बैठ जाना और इसी एक बात का गहन स्मरण करना कि मैं जैसा हूं वैसा ही:! और मैं तुमसे कहता हूं: अभी और यहीं तुम जैसे हो ऐसे ही:! बस फर्क इतना ही है कि कर्ता से चेतना हट जाए और साक्षी हो जाए। जरा-सा फर्क है; जैसे कोई गेयर बदलता कार में, बस ऐसा गेयर बदलना-कर्ता से साक्षी। इस गेयर बदलने के लिए कई बातें सहयोगी हो सकती हैं, लेकिन इस गेयर बदलने को कोई भी बात जरूरी नहीं। ध्यान सहयोगी हो सकता है, लेकिन ध्यानी मत बन जाना। संन्यास सहयोगी हो सकता है, लेकिन संन्यास की अकड़ मत ले लेना-संन्यासी मत बन जाना, नहीं तो चूक गए! पूजा प्रार्थना सहयोगी हो सकती है, लेकिन पुजारी मत बन जाना। ये सब चीजें सहयोगी हो सकती हैं
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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