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________________ तुम इस बात के लिए भी राजी हो। अगर कोई तुमसे कहे कि ठीक, कुछ करना है तो तुम कहते हो, करने को हम राजी हैं, क्योंकि करने में तत्क्षण तो क्रांति होने वाली नहीं। करेंगे, अभी कोई जल्दी तो है नहीं। आज तो होने वाला नहीं है, कल करेंगे, परसों करेंगे। लेकिन जनक की बात सुनने की हिम्मत नहीं है। क्योंकि जनक कहते हैं: अभी हो सकता है। तुम्हें बचने का जरा भी तो अवसर नहीं देते। तुम्हें भागने का जरा भी तो उपाय नहीं देते। तुम स्थगित कर सको, इतनी बेईमानी की गुंजाइश नहीं छोड़ते। इसलिए अष्टावक्र की गीता प्रभावी नहीं हो सकी। मुझसे लोग पूछते हैं कि इतना महाग्रंथ....... कृष्ण की गीता तो इतनी प्रभावी हुई अष्टावक्र की गीता प्रभावी क्यों न हो सकी? कारण साफ है। कारण यह है कि अष्टावक्र कहते हैं: अभी हो सकता है। और इतना दाव लगाने की हिम्मत बड़ी बिरली हिम्मत, कभी होती है किसी में! इसलिए ऐसी बात को लोग सुनते ही नहीं, पढ़ते ही नहीं। लोग तो ऐसी बात पढ़ते-सुनते हैं जिसमें उनको सुविधा रहे। 'आश्रम है, अनाश्रम है, ध्यान है, और चित्त का स्वीकार और वर्जन है। उन सबसे उत्पन्न हुए अपने विकल्प को देख कर मैं इन तीनों से मुक्त हुआ स्थित हूं।' 'आश्रम है..................:।' हिंदू चार आश्रम में बांटते जीवन को, वर्गों में बांटते। चार वर्ण, चार आश्रम। लेकिन जनक कहते हैं : आश्रम है, अनाश्रम है-वह भी जाल है, वह भी उपद्रव है। सब विभाजन उपद्रव हैं। अविभाज्य की खोज करनी है तो विभाजन से काम न आएगा। न ब्राह्मण ब्राह्मण है, न शूद्र शूद्र है-वे सब चालबाजिया हैं। वे राजनीतिज्ञों की शोषण की व्यवस्थाएं हैं। और मैं बंटने को राजी नहीं हूं क्योंकि चैतन्य न तो शूद्र है और न ब्राह्मण है। चैतन्य तो बस चैतन्य है। वह साक्षी तो सिर्फ साक्षी है। इसलिए कभी-कभी ऐसा होता है, बड़े-बड़े ज्ञानी भी क्षुद्र बातो में पड़े रह जाते हैं। कहते हैं, शंकराचार्य काशी में स्नान करके लौटते थे कि एक शूद्र ने उनको छू लिया तो वे चिल्लाए कि हट शूद्र! लेकिन शूद्र भी फकीर संत था। उसने कहा कि मैंने सुना कि आप अद्वैत का प्रचार करते हैं और आप कहते हैं, एक ही है! और इस एक ही में ये शूद्र और ब्राह्मण कहां से आ गए? और मैं यह पूछना चाहता हूं महानुभाव, कि जब मैंने आपको छुआ तो आपके शरीर को छुआ कि आपकी आत्मा को छुआ? अगर शरीर को छुआ है, तो शरीर तो सभी के शूद्र हैं, सभी गंदे हैं; और शरीर से शरीर को छुआ तो आप क्यों परेशान हो रहे हैं? और अगर मैंने आपकी आत्मा को छू लिया, तो आत्मा तो न शूद्र है न ब्राह्मण है। ऐसा आप ही उपदेश करते हैं। कहते हैं, शंकराचार्य, जो बड़े-बड़े पंडितो को हरा चुके थे, बड़े दिग्गजों को हरा चुके थे, इस फकीर के सामने झुक गए और नत हो गए। उन्होंने कहा : क्षमा करना, ऐसा बोध मुझे कभी किसी ने दिया नहीं। फिर बहुत शंकराचार्य ने कोशिश की कि खोजें यह कौन आदमी था! सुबह के अंधेरे में यह बात हो गई थी, ब्रह्ममुहूर्त में पता नहीं चल सका, कौन आदमी था! लेकिन जो भी रहा हो, उसका अनुभव बड़ा गहरा था।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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