SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पास नहीं आते हो पुकार मचवाते हो तकसीर बतलाओ, क्यों यह बदन उमेठे हो? दरस दीवाना जिसे नाम का ही बाना उसे शरण विलोकते भी देव-देव ऐंठे हो! सींखचों में घूमता हूं चरणों को अता हूं सोचता हूं मेरे इष्टदेव पास बैठे हो पास कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि पास में भी दूरी आ गई। इष्टदेव भीतर बैठे हैं। पास कहना भी ठीक नहीं। सींखचों में घूमता हूं चरणों को अता हूं सोचता हूं _ मेरे इष्टदेव पास बैठे हो! चट जग जाता हूं चिराग को जलाता हूं। हो सजग तुम्हें मैं देख पाता हूं बैठे हो परमात्मा पास है, ऐसा कहना भी ठीक नहीं। दूर है, यह तो बिलकुल ही भ्रांत है। तुमने जब भी हाथ उठा कर आकाश में परमात्मा को प्रणाम किया है तभी तुमने परमात्मा को बहुत दूर कर दिया है-बहुत दूर! अपने हाथ से दूरी खड़ी कर ली है और विलग हो गये, पृथक हो गये! । देखते हो, इस देश में पुरानी प्रथा है. किसी को, अजनबी को भी तुम गांव में से गुजरते हो तो अजनबी कहता है : 'जय राम जी!' मतलब समझे? पश्चिम में लोग कहते हैं, गुड मार्निंग! लेकिन यह उतना मधुर नहीं है। ठीक है, सुंदर सुबह है! बात मौसम की है, कुछ ज्यादा गहरी नहीं। प्रकृति के पार नहीं जाती। इस देश में हम कहते हैं. जय राम जी! हम कहते हैं : राम की जय हो! अजनबी को देख कर भी...। शहरों में तो अजनबी को कोई अब जय राम जी नहीं करता है। अब तो हम जय राम जी में भी हिसाब रखते हैं-किससे करनी और किससे नहीं करनी! जिससे मतलब हो, उससे करनी; जिससे मतलब न हो, उससे न करनी। जिससे कुछ लेना-देना हो उससे खूब करनी, दिन में दस-पांच बार करनी। जिससे कुछ न लेना-देना हो, या जिससे डर हो कि कहीं तुमसे कुछ न ले-ले उससे तो बचना, जय राम जी भूल कर न करनी।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy