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________________ 'जय राम जी' जैसा सरल मंत्र भी व्यावसायिक हो गया है। लेकिन देहात में, गांव में अब भी अजनबी भी गुजरे तो सारा गांव, जिसके पास से गुजरेगा कहेगा : 'जय राम जी! जय हो राम की!' वह तुमसे यह कह रहा है कि तुम अजनबी भला हो लेकिन तुम्हारा राम तो हमसे अजनबी नहीं तुम ऊपर-ऊपर कितने ही भिन्न हो, हम राम को देखते हैं। वह जो कहने वाला है चाहे समझता भी न हो लेकिन इस परंपरा के भीतर कुछ राज तो है। लोग प्रकाश को जलाते हैं और लोग हाथ जोड़ लेते हैं: दीया जलाया, हाथ जोड़ लेते हैं। हम सोचते हैं, गांव के गंवार हैं। शहर में भी आ जाए गांव का प्राणी, तुम बिजली की बत्ती जलाओ तो वह हाथ जोड़ता है। तो तुम हंसते हो। तुम सोचते हो 'पागल! अरे यह बिजली की बत्ती है, इसमें अपने हाथ से जलाई-बुझाई, इसमें क्या हाथ जोड़ना है!' लेकिन वह यह कह रहा है. जहां प्रकाश है वहां परमात्मा है। पास है, प्रकाश जैसा पास है। चट जग जाता हूं चिराग को जलाता हूं हो सजग तुम्हें मैं देख पाता हूं कि बैठे हो सींखचों में घूमता हूं चरणों को अता हूं सोचता हूं? मेरे इष्टदेव पास बैठे हो! सींखचों में घूमता हूं! इसीलिए 'पास' मालूम होता है। सींखचों का फासला रह गया है। तुमने देखा, अपने बेटे को छाती से भी लगा लेते हो, फिर भी सींखचे बीच में हैं! अपनी पत्नी को हृदय से लगा लेते हो, फिर भी सींखचे बीच में हैं। मित्र को गले से मिला लेते हो, फिर भी सींखचे बीच में हैं। पास नहीं है परमात्मा। दूर तो है ही नहीं, पास भी नहीं है। परमात्मा ही है-दूर और पास की भाषा ही गलत है। वही बाहर, वही भीतर। वही यहां, वही वहां। वही आज, वही कल, वही फिर भी आगे आने वाले कल। वही है। एक ही है। सूर्योदय! एक अंजुली फूल जल से जलधि तक अभिराम माध्यम शब्द अद्धोंच्चारित जीवन धन्य है आभार फिर आभार इस अपरिमित में अपरिमित शांति की अनुभूति अक्षम प्यार का आभास
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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