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________________ ठीक है, मैंने ही तेरा नाम ले कर पुकारा था पर मैंने यह कब कहा था कि यूं आ कर मेरे दिल में जल? जब तुम सुन लोगे तो जलोगे। जब सुन लोगे तो एक ज्योति उठेगी। जो रोशनी तो बनेगी बहुत बाद में, पहले तो जलन बनेगी। खयाल किया तुमने, प्रकाश के दो अंग हैं : एक तो है जलाना और एक है रोशन करना। पहले तो जब रोशनी तुम्हारे जीवन में आयेगी तो तुम जलोगे क्योंकि तुम उससे बिलकुल अपरिचित हो। पहले तो वह सिर्फ गरमी देगी; उबालेगी तुम्हें वाष्पीभूत करेगी। फिर बाद में जब तुम उससे राजी होने लगोगे तो धीरे - धीरे रोशनी बनेगी। पहले तो किरण अंगार की तरह आती है, दीया तो बहुत बाद में बनती है। तो तुम डरते हो। तुममें से कई को मैं देखता हूं सिर झुकाये सुन रहे हो। ऊपर से निकल जाने देते हो कि जाने दो, अभी अपना समय नहीं आया है। और सबके अपने-अपने बहाने हैं बचने के। तुम अगर कभी प्रभु का नाम भी पुकारते हो.......| नाम? नाम का एक तरह का सहारा था मैं थका-हारा था, पर नहीं था किसी का गुलाम पर तूने तो आते ही फूंक दिया घर-बार हिया के भीतर भी जगा दिया नया हाहाकार। कबीर ने कहा है. जो घर बारे आपना चले हमारे संग। घर जलाने की हिम्मत हो तो ये बातें समझ में आयेंगी। जहां तुम बस गये हो वहां से उखड़ने का साहस हो तो ये बातें समझ में आयेंगी, तो तुम सुनोगे तो तुम गुनोगे। और गुनते ही तुम्हारे जीवन में क्रांति शुरू हो जायेगी। ये बात सिर्फ बातें नहीं हैं; ये क्रांति. के सूत्र हैं। लेकिन मैं जानता हूं बड़ी अड़चन है। अड़चन तुम्हारी तरफ से 'है। ऊंचे से ऊंचा तुम्हारी पकड़ के भीतर है। पहुंच के भीतर भला न हो मगर पकड़ के भीतर है। बात को खयाल में ले लेना। जब मैं कहता हूं पहुंच के भीतर नहीं है तो उसका अर्थ इतना है कि तुमने अब तक प्रयास नहीं किया है। तुम वहां तक अपना पहुंचा नहीं ले गये नहीं तो पहुंच के भीतर हो जाते। तुम पहुंचा नीचे डाले हो इसलिए पहुंच के भीतर नहीं है। लेकिन पकड़ के भीतर तो है ही। जब भी तुम पकडना चाहोगे, पकड़ लोगे। इस जगत मैं ऐसा कोई सत्य कभी नहीं कहा गया है और कहा नहीं जा सकता जो मनुष्य मात्र की पकड़ के भीतर न हो। लेकिन बड़ी घबराहटें हैं। बुद्धों की बातें सुननी समझनी-दाव लगाना है, जुआरी का दाव। एक व्यक्ति पातक इसलिए करता है कि सबके भीतर पाप के भाव भरे हैं जहां भी पुण्य की वेदी है, मैं मारू का धुआं हूं मंडप से झूलता फूलों का बंदनवार हूं
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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