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________________ कलियां नहीं देखता जो तैयार हो रही हैं, जल्दी ही गंध बिखरेगी। वह यह कुछ नहीं देखता । उसे दिखाई पड़ता है वनस्पति कौन-सी जाति की है? नाम क्या? पता क्या ? अलग-अलग लोगों की अलग- अलग पकड़ है। एक चमार बैठा रहता है रास्ते पर। वह तुम्हें नहीं देखता, तुम्हारा चेहरा नहीं, वह जूते देखता रहता है, वह जूतों से पहचानता रहता है, कैसा आदमी है। अगर जूते की हालत अच्छी है तो आदमी की आर्थिक हालत अच्छी है। दर्जी कपड़े देखता है, तुम्हें थोड़े ही देखता है! कपड़े देख कर पहचान लेता है। हर आदमी के अपने देखने के ढंग हैं। मैने कहा वे मुझे सुनते हैं लेकिन उनके सुनने में कोई धार्मिक अभिरुचि नहीं है। वे किसी जीवन-क्रांति के लिए उत्सुक नहीं हैं। उन्हें सुनने में अच्छा लगता है। सुनने में उन्हें रस है जो मैं कह रहा हूं, उसमें रस नहीं है। वे कहते हैं कि आपके कहने की शैली मधुर है। शैली में रस है। शैली का क्या खाक करोगे? चाटोगे? ओढोगे, बिछाओगे, खाओगे - क्या करोगे शैली का ? थोड़ी देर मंत्र-मुग्ध कर जावेगी, फिर तुम खाली के खाली रह जाओगे। उन्हें सत्य में रस नहीं है, सत्य की अभिव्यक्ति में रस है। इसलिए तू उनके लिए तो घबड़ा मत, लेकिन तू सावधान रहना । और यही हुआ। जब दोबारा मैं गया तो उनकी पत्नी ने संन्यास लिया। पति तो बोले कि बड़ी हैरानी की बात है, तू तो कभी सुनती नहीं उसने कहा. मैं चोरी-छिपे पढ़ती हूं। जब कोई नहीं देख रहा होता, तब मैं पढ़ती हूं। मैं डरी- डरी पढ़ती हूं कि ये बातें तो ठीक हैं। लेकिन पिछली बार जब उन्होंने कहा कि तेरे लिए खतरा है, तब से बात चोट कर गयी। पति अभी भी संन्यासी नहीं हैं, पत्नी संन्यासी हो गयी। कभी सुना नहीं, कभी ज्यादा करीब आयी नहीं । ध्यान रखना, अड़चन है। तुम कई बातें सुनना नहीं चाहते। इसीलिए तुम सिर को झुका लेते हो और ऊपर से निकल जाने देते हो। अगर तुम सुनना चाहो तो तुम सिर को ऊंचा उठा लोगे और सिर में से निकलने दोगे। अगर तुम वस्तुत सुनना चाहो तो तुम इतने ऊंचे खड़े हो जाओ कि वे ही बातें हृदय से निकलने लगेंगी। और जब तक बातें हृदय से न निकल जायें तब तक क्रांति नहीं आती; यद्यपि हृदय से निकलें तो बड़ा उपद्रव मचता है, अराजकता फैलती है। ठीक है, मैंने ही तेरा नाम ले कर पुकारा था पर मैंने यह कब कहा था कि यूं आ कर मेरे दिल में जल ? मेरे हर उद्यम में उघाड़ दे मेरा छल मेरे हर समाधान में उछाला कर सौ-सौ सवाल अनुपल नाम? नाम का एक तरह का सहारा था मैं थका-हारा था, पर नहीं था किसी का गुलाम पर तूने तो आते ही फूंक दिया घर-बार हिया के भीतर भी जगा दिया नया हाहाकार
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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