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________________ और जो पाप करके लौटा है उसके पातक का मैं बराबर का हिस्सेदार हूं एक उपकारी सबके गले का हार है और जिसने मारा या जो मारा गया है उनमें से हरेक हत्यारा है और हरेक हत्या का शिकार है मैं दानव से छोटा नहीं, न वामन से बड़ा हूं सभी मनुष्य एक ही मनुष्य हैं सबके साथ मैं आलिंगन में खड़ा हूं वह जो हार कर बैठ गया उसके भीतर मेरी ही हार है वह जो जीत कर आ रहा है उसकी जय में मेरी ही जयजयकार है। जब बुद्ध कहते हैं, तुम बुद्ध हो तो यह बात प्रीतिकर लगती है, लेकिन इसका एक दूसरा हिस्सा भी है जो अप्रीतिकर है। वह अप्रीतिकर यह है कि जब बुद्ध कहते हैं तुम बुद्ध हो तो वे यह भी कह रहे हैं कि तुम महापापी भी हो। क्योंकि हम सब संयुक्त हैं, जुड़े हैं। कहते हैं, बुद्ध को जब ज्ञान हुआ और जब ब्रह्मा ने उनसे पहली बार पूछा कि आप ज्ञान को उपलब्ध हो गये? तो बुद्ध ने कहा. मैं! मैं ही नहीं, मेरे साथ सारा जगत शान को उपलब्ध हो गया। के पत्ते और पहाड़ों के पत्थर और नदी-झरने और मनुष्य और पशु-पक्षी सब मेरे साथ मुक्त वृक्षों हो गये, क्योंकि मैं जुड़ा हूं। ब्रह्मा को बात समझ में न आयी। फिर अंतिम कहानी है। यह तो प्रथम कहानी हुई बुद्ध को ज्ञान हुआ, तब घटी। फिर अंतिम कहानी है कि बुद्ध जब स्वर्ग के द्वार पर गये, द्वार खोला, ब्रह्मा स्वागत को आया, तो वे वहीं अड़े रह गये। ब्रह्मा ने कहा : भीतर आयें। हम प्रतीक्षा कर रहे हैं। बुद्ध ने कहा. मैं कैसे भीतर आऊं न: जब तक एक भी बाहर है, मेरा भीतर आना कैसे हो सकता है? हम सब साथ हैं। जब सारा जगत भीतर आयेगा तभी मैं भीतर आऊंगा। ये दो कहानियां दो कहानियां नहीं, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। तो जब कोई तुमसे कहता है तुम्हारे भीतर भगवान है तो तुम्हारा अहंकार इसको तो स्वीकार भी कर ले कि ठीक, यह कुछ विपरीत बात नहीं; लेकिन जब कोई कहेगा, तुम्हारे भीतर महापापी से महापापी भी है, तब बेचैनी होती है। जब यह कहा जाता है कि एक ही है, तब तुम बार-बार सोचने लगते हो, राम से अपना संबंध जुड़ गया। रावण से भी जुड़ गया जब एक ही है! तो तुम रावण भी हो और राम भी हो। जब कहा जाता है कि तुम्हारा जीवन एक सीढ़ी है, तो यह तो सोच लेते हो कि सीढ़ी स्वर्ग पर लगी है। लेकिन एक पाया नीचे नर्क में टिका है और एक पाया स्वर्ग में टिका है।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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