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________________ सत्य की खोज को ऐसा मत सोचना जैसे धन की खोज है कि तुम गए और धन खोज कर आ गए और तिजोडिया भर लीं। सत्य की खोज बड़ी अन्यथा है। तुम गए-तुम गए ही। तुम कभी लौटोगे न, सत्य लौटेगा! ऐसा नहीं एं कि सत्य को तुम मुट्ठियों में भर कर ले आओगे, तिजोडियो में रख लोगे। तुम कभी सत्य के मालिक न हो सकोगे। सत्य पर किसी की कोई मालकियत नहीं हो सकती। जब तक तुम्हें मालिक होने का नशा सवार है, तब तक सत्य तुम्हें मिलेगा नहीं। जिस दिन तुम चरणों में गिर जाओगे, विसर्जित हो जाओगे, तुम कहोगे 'मैं नहीं हूं-उसी क्षण सत्य है। तुम सत्य को न खोज पाओगे; तुम मिटोगे तो सत्य मिलेगा। तुम्हारा होना बाधा है। तो ऐसे बचते मत रहो। मैं ध्यान की कहूं तो तुम प्रेम की कहो मैं प्रेम की कहूं तो तुम ध्यान की कहो-ऐसा पात-पात फुदकते न रहो। ऐसे ही तो जनम-जनम तुमने गंवाए। मेरे साथ कठिनाई है थोड़ी। अगर तुम बुद्ध के पास होते तो बच सकते थे क्योंकि बुद्ध ध्यान की बात कहते, प्रेम की बात नहीं कहते। तुम कह सकते थे : मेरा मार्ग तो प्रेम है। तुम उपाय खोज लेते। तुम चैतन्य के पास बच सकते थे, क्योंकि चैतन्य प्रेम की बात कहते; तुम कहते कि हमारा उपाय तो ध्यान है। तुम मुझसे न बच कर भाग सकोगे। तुम कहो प्रेम से मरेंगे मैं कहता हूं : चलो।' ध्यान से मरना है मैं कहता हूं : ध्यान से मरो। मरना मूल्यवान है। इसलिए तुम अगर मेरे साथ उलझ गए हो तो शहीद हुए बिना चलेगा नहीं। शहादत का मौका आ ही गया है। देर - अबेर कर सकते हो, थोड़ी-बहुत देर यहां वहां उलझाए रख सकते हो, लेकिन ज्यादा देर नहीं। फिर इस देर- अबेर में तुम कोई सुख भी नहीं पा रहे हो। सिवाय दुख के और कुछ भी नहीं है। बिना सत्य को जाने सुख हो भी कैसे सकता है? सुख तो सत्य की ही सुरभि है, उसकी ही सुगंध है। सुख तो सत्य का ही प्रकाश है। दूसरा प्रश्न : ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय से परे स्वयं में जो स्थित होना है, क्या उस अवस्था में आजीवन जीया जा सकता है? जिस तरह झील कभी शांत, कभी चंचल और कभी तूफानी अवस्था में होती है, क्या उसी तरह आत्मज्ञानी सांसारिक परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होता है? प्रभु अज्ञान हरें! पहली तो बात: 'ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय से परे स्वयं में जो स्थित होना है, क्या उस अवस्था में आजीवन जीया जा सकता है? 'आजीवन' भ्रांत मन का फैलाव है। एक क्षण से ज्यादा तुम्हारे पास कभी होता ही नहीं। दो
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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