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________________ कदम उठा लिया। जिसने कहा, मैं देह नहीं, निश्चयपूर्वक जान कर जिसने कहा, मैं मन नहीं-उसने कदम उठा लिए धीरे-धीरे कैवल्य की तरफ। शीघ्र ही वह घड़ी आएगी जब उसके भीतर उदघोष होगा :'अहं ब्रह्मास्मि! अनलहक! मैं ही हूं ब्रह्म' फिर ऐसे व्यक्ति को न तो किए की चिंता होती है न अनकिए की चिंता होती है। तुमने देखा कभी, तुम उन कर्मों का तो हिसाब रखते ही हो जो तुमने किए, जो तुम नहीं कर पाए उनके लिए भी चिंतित होते हो! तुमने मूढ़ता का कोई अंत देखा? यह गणित को समझो। कल तुम किसी को गाली नहीं दे पाए, उसकी भी चिंता चलती है। दी होती तो चिंता चलती, समझ में आता है। दे नहीं पाए, मौका चूक गए; अब मिले मौका दुबारा, न मिले मौका दुबारा; समय वैसा हाथ आए न आए-अब इसकी चिंता चलती है। तुम किए हुए की चिंता कसे हो, अनकिए की चिंता करते हो। तुम जो-जो नहीं कर पाए जीवन में, वह भी तुम्हारा पीछा करता है। मुल्ला नसरुद्दीन मर रहा था। तो मौलवी ने उससे कहा कि अब पश्चात्ताप करो, अब आखिरी घड़ी में प्रायश्चित करो! उसने आंख खोली। उसने कहा कि प्रायश्चित ही कर रहे हैं, अब बीच में गड़बड़ मत करो! उस मौलवी ने पूछा : जोर से बोलो, किस चीज का प्रायश्चित कर रहे हो? उसने कहा कि जो पाप नहीं कर पाए, उनका प्रायश्चित कर रहा हूं-कि कर ही लेते तो अच्छा था, यह मौत आ गई। अब पता नहीं बचें कि न बचें। अगर दुबारा प्रभु ने भेजा-मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा-तो अब इतनी देर न करेंगे। जल्दी-जल्दी निपटा लेंगे। जो-जो नहीं कर पाए, उसी का पश्चात्ताप हो रहा है। मरते वक्त अधिक लोग उसका पश्चात्ताप करते हैं, जो नहीं कर पाए। ऐसा पुरुष, जिसने जाना मैं देह नहीं, मैं मन नहीं और जिसने पहचानी अपने भीतर की छवि-अनकिए की तो बात छोड़ो, किए का भी विचार नहीं करता। जो हुआ हुआ जो नहीं हुआ नहीं हुआ| वह बोझ नहीं ढोता, वह अतीत को सिर पर लेकर नहीं चलता। और जिस व्यक्ति ने अतीत को सिर से उतार कर रख दिया, उसके पंख फैल जाते हैं, वह खुले आकाश में उड़ने लगता है। उस पर जमीन की कशिश का कोई प्रभाव नहीं रह जाता, वह आकाशगामी हो जाता है। बोझ तुम्हारे सिर पर अतीत का है। और अतीत के बोझ के कारण भविष्य की आकांक्षा पैदा होती है। जो नहीं कर पाए, भविष्य में करना है। जो कर लिया, और भी अच्छी तरह कर सकते थे-उसको भविष्य में करना है। भविष्य क्या है? तुम्हारे अतीत का ही सुधरा हुआ रूप सजा-संवारा, और व्यवस्थित किया। अब की बार मौका आएगा तो और अच्छी तरह कर लोगे। अतीत का बोझ जो ढोता है, वही भविष्य के पीछे भी दौड़ता रहता है। जिसने अतीत को उतार दिया, उसका भविष्य भी गया। वह जीता शुद्ध वर्तमान में। और वर्तमान में होना परमात्मा में होना है। 'ब्रह्म से ले कर तृणपर्यंत मैं ही हूं-ऐसा जो निश्चयपूर्वक जानता है, वह निर्विकल्प शुद्ध और शांत और लाभालाभ से मुक्त होता है।' जिसने जाना कि ब्रह्म से लेकर तृणपर्यंत एक ही जीवन-धारा है, एक ही जीवन का खेल है,
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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