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________________ एक ही जीवन की तरंगें हैं, एक ही सागर की लहरें-जिसने ऐसा पहचान लिया,'तृण से ले कर ब्रह्म तक', वह निर्विकल्प हो जाता है। फिर किसका भय है! फिर कैसी वासना! फिर कैसी अशांति! फिर कैसी अशुद्धि! जब एक ही है तो शुद्ध ही है। फिर कैसा लाभ, कैसा अलाभ! 'अनेक आश्चर्यों वाला यह विश्व कुछ भी नहीं है, अर्थात मिथ्या है-ऐसा जो निश्चयपूर्वक जानता है, वह वासना-रहित, बोध-स्वरूप पुरुष इस प्रकार शांति को प्राप्त होता है, मानो कुछ भी नहीं है।' नानाश्चर्यमिद विश्व न किचिदिति निश्चयी। निर्वासन: स्फूर्तिमात्रो न किचिदिव शाम्यति इदम् विश्व नानाश्चर्यं न किंचित: यह जो बहुत-बहुत आश्चर्यों से भरा हुआ विश्व है शांत हुए व्यक्ति को ऐसा लगता है कि सपना मात्र। यह सत्य लगता है तुम्हारी वासना के कारण, तुम्हारी वासना इसमें प्राण डालती है। वासना के हटते ही प्राण निकल जाते हैं विश्व में से। यह नाना आश्चर्यों से भरा हुआ विश्व अचानक स्वम्नवत हो जाता है, मायाजाल! इति निश्चयी निर्वासन: स्फूर्तिमात्र न किचिदिव शाम्यति! __ 'ऐसा निश्चयपूर्वक जिसने जाना, वह वासना-रहित बोध-स्वरूप पुरुष इस प्रकार शांति को प्राप्त होता है, मानो कुछ भी नहीं है।' यह सूत्र खयाल रखना। रात तुमने स्वप्न देखा कि तुम गिर पड़े पहाड़ से, कि छाती पर राक्षस बैठे हैं, कि गर्दन दबा रहे हैं, कि चीख निकल गई, कि चीख में नींद टूट गई। नींद टूटते ही तुम पाते हो कि चेहरा पसीना पसीना है। छाती धक-धक हो रही, हाथ-पैर कैप रहे, लेकिन अब तुम हंसते हो। अब कोई अशांति नहीं होती। अब न राक्षस है, न पहाड है, न कोई तुम्हारी छाती पर बैठा है। हो सकता है अपने ही तकिए अपनी ही छाती पर लिए पड़े हो। या कभी-कभी तो ऐसा होता है कि अपने ही हाथ छाती पर वजन डालते हैं और लगता है कोई छाती पर बैठा है। अब तुम हंसते हो। अभी तक जो सपना था, सत्य मालूम हो रहा था, तो घबड़ाहट थी। अब सपना हो गया तो घबड़ाहट खो गई। बोध को प्राप्त व्यक्ति, संबोधि को उपलब्ध व्यक्ति, जिसने जाना कि मैं स्फूर्ति-मात्र हूं चैतन्य मात्र हूं चिन्मात्र हूं वह ऐसे जीने लगता है संसार में जैसे संसार है ही नहीं जैसे संसार है ही नहीं, है या नहीं है, कुछ भेद नहीं। धागे में मणियां हैं कि मणियों में धागा ज्ञाता वह जो शब्द में सोया अक्षर में जागा। यह जो तुम बाहर देखते हो क्षर है, क्षणभंगुर है। ज्ञाता वह जो शब्द में सोया
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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