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________________ भींचता है मुट्ठिया पीसता है दात नोचता है चेतना के पंख नहीं देख पाता आत्मा का निरभ्र आकाश। तुम जो भी शोरगुल मचा रहे हो, वह तुम नाहक ही मचा रहे हो। सिबली ने देखा, एक कुत्ता पानी के पास आया, प्यासा है, मरा जाता है लेकिन पानी में दिख गई अपनी छाया, तो घबड़ाया दूसरा कुत्ता मौजूद है, झपटने को मौजूद है, खूखार मालूम होता है। भौंका तो दूसरा कुत्ता भी भौंका। उसकी अपनी ही प्रतिध्वनि थी। सिबली बैठा देखता रहा और हंसने लगा। उसे सब समझ में आ गया। उसे अपने ही जीवन का पूरा राज सब समझ में आ गया। पर प्यास ऐसी थी उस कुत्ते की कि कूदना ही पड़ा। आखिर हिम्मत करके एक छलांग लगा ली। पानी में कूदते ही दूसरा मिट गया। वह दूसरा तो प्रतिबिंब था। जिससे तुम भयभीत हो वह तुम्हारी छाया है। जिससे तुम चिंतित हो वह तुम्हारी छाया है। जिससे तुम लड़ रहे हो वह तुम्हारी छाया है। हिंदी में शब्द है परछाई,। यह बड़ा अदभुत शब्द है! किसने गढ़ा? किसी बड़े जानकार ने गढ़ा होगा। तुम्हारी छाया को कहते हैं परछाईं-पराये की छाया। कभी इस शब्द पर खयाल किया? छाया तम्हारी है, नाम है परछाई! तम्हारी छाया ही पर हो जाती है, वह ही पर जैसी भासती है। ठीक ही जिसने यह शब्द चुना होगा, बड़ा बोधपूर्वक चुना होगा परछाईं। अपनी ही छाया दूसरे जैसी मालूम होती है, उससे ही संघर्ष चलने लगता है। फिर लड़ो खूब, जीत हमारे हाथ नहीं लगेगी। कहीं छाया से कोई जीता है! शून्य में व्यर्थ ही कशतम-कुश्ती कर रहे हो। 'मैं शरीर नहीं हूं देह मेरी नहीं है मैं चैतन्य हूं-ऐसा जो निश्चयपूर्वक जानता है, वह पुरुष कैवल्य को प्राप्त होता हुआ, किए और अनकिए कर्म को स्मरण नहीं करता है।' नाहं देहो न मे देहो बोधोठहमिति निश्चयी। कैवल्यमिव संप्राप्तो न स्मरत्यकृतं कृतम्।। अहं देह: न: -मैं देह नहीं। देह: मे न: -और देह मेरी नहीं। बोधोठहम् इति निश्चयी. -ऐसा जिसके भीतर बोध का दीया जला, ऐसा निश्चयपूर्वक जिसके भीतर ज्योति जगी: कैवल्य संप्राप्त...... -वह धीरे-धीरे कैवल्य की परम दशा को उपलब्ध होने लगता है। क्योंकि जिसने जाना मैं देह नहीं, ज्यादा दूर नहीं है उसका जानना कि मैं ब्रह्म हूं। उसने पहला
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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