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________________ फल से मेरा छुटकारा हो गया। फिर तो उस फल को मैं वृक्ष में भी देखता तो मेरे पेट में दर्द होने लगता। बाजार में बिकता होता तो मैं आख बचा कर निकल जाता । रस की तो बात दूर, विरस पैदा हुआ। विरस यानी वैराग्य । राग के दुख की ठीक प्रतीति से ही वैराग्य का जन्म होता है। अधूरा रागी कभी योगी नहीं बन पाता, विरागी नहीं बन पाता। इसलिए मेरे शिक्षण में, तुम्हें कहीं से भी जल्दबाजी में हटा लेने की कोई आकांक्षा नहीं है। तुम घर में हो, घर में रहो। तुम भोग में हो, भोग में रहो। एक ही बात खयाल रखो : तुम जहां हो, उस अनुभव को जितनी प्रगाढ़ता से ले सको, उतना शुभ है। एक दिन भोग ही तुम्हें उस जगह ले आयेगा जहां प्राणपण से पुकार उठेगीप्रत्येक नया दिन नयी नाव ले आता है लेकिन समुद्र है वही, सिंधु का तीर वही प्रत्येक नया दिन नया घाव दे जाता है लेकिन पीड़ा है वही, नयन का नीर वही धधका दो सारी आग एक झोंके में थोड़ा-थोड़ा हर रोज जलाते क्यों हो? क्षण में जब यह हिमवान पिघल सकता है, तिल-तिल कर मेरा उपल गलाते क्यों हो? एक ऐसी घड़ी आती है जब तुम प्रभु से प्रार्थना करते हो कि एक क्षण में कर दो भस्मीभूत सब! क्षण में जब यह हिमवान पिघल सकता है तिल-तिल का मेरा उपल गलाते क्यों हो? धधका दो सारी आग एक झोंके में थोड़ा-थोड़ा हर रोज जलाते क्यों हो? इस घड़ी में संन्यास फलित होता है। संन्यास सदबुद्धि की घोषणा है। 'विषयों में विरसता मोक्ष है, विषयों में रस बंध है। इतना ही विज्ञान है। तू जैसा चाहे वैसा कर।' देखते हो यह अपूर्व सूत्र ! मोक्षो विषयवैरस्य बंधो वैषयिको रसः एतावदेव विज्ञानं यथेच्छसि तथा कुरु । 'विषयों में विरसता मोक्ष है।' मोक्ष तुम्हारे चैतन्य की ऐसी दशा है जब विषयों में रस न रहा, जबर्दस्ती थोप- थोप कर तुम विरस पैदा न कर सकोगे। जितना तुम थोपोगे उतना ही रस गहरा होगा। इसलिए मैं देखता हूं : गृहस्थ के मन में स्त्री का उतना आकर्षण नहीं होता जितना तुम्हारे तथाकथित संन्यासी के मन होता है। जिस दिन तुम भोजन ठीक से करते हो, उस दिन भोजन की याद नहीं आती, उपवास करते हो, उस दिन बहुत आती है। दबाओ कि रस बढ़ता है, घटता नहीं । निषेध से निमंत्रण बढ़ता है, मिटता नहीं। और यही प्रक्रिया
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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