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________________ जाग तुझको दूर जाना! अंतर की यात्रा बड़ी से बड़ी यात्रा है। चांद-तारों पर पहुंच जाना इतना कठिन नहीं, इसलिए तो आदमी पहुंच गया। भीतर पहुंचना ज्यादा कठिन है। गौरीशंकरपर चढ़ जाना इतना कठिन नहीं, इसलिए तो आदमी चढ़ गया! भीतर के शिखर पर पहुंच जाना अति कठिन है। ___ कठिनाई क्या है? कठिनाई यह है कि बाहर अभी हजार काम अधूरे पड़े हैं। जगह-जगह मन अभी बाहर उलझा है। रस अभी कायम है। धार भीतर बहे तो बहे कैसे? धार भीतर एक ही स्थिति में बहती है जब बाहर से सब संबंध अनुभव के द्वारा व्यर्थ हो गये। तुम भोग लो, भोगी अगर ठीक-ठीक भोग में उतर जाए तो योगी बने बिना रह नहीं सकता। भोग का आखिरी कदम योग है। इसलिए मैं भोग और योग को विपरीत नहीं कहता। भोग तैयारी है योग की, विपरीत नहीं; मैं नास्तिकता को आस्तिकता के भी विपरीत नहीं कहता। नास्तिकता सीडी है आस्तिकता की। नहीं कह कर ठीक से देख लो। नहीं कहने का दुख ठीक से भोग लो। नहीं कहने के कांटे को चुभ जाने दो प्राणों में। रोओ, तड़प लो! तभी तुम्हारे भीतर से 'ही' उठेगी, आस्तिकता उठेगी। और जल्दी कुछ भी नहीं है, और ये काम जल्दी में होने वाले भी नहीं हैं। जहां तुम्हारा मन रस लेता हो वहां तुम चले ही जाओ। जब तक तुम्हें वहा वमन न होने लगे तब तक हटना ही मत। इतनी हिम्मत न हो तो सत्वबुद्धि पैदा नहीं होगी। गुरजिएफ ने लिखा है कि जब वह छोटा था तो उसे एक खास तरह के फल में बहुत रस था। काकेशस में होता है वह फल। लेकिन वह फल ऐसा था कि उससे पेट में दर्द होता है। लेकिन स्वाद उसका ऐसा था कि छोड़ा भी नहीं जाता था। बच्चे बच्चे हैं। के तक बच्चे हैं तो बच्चों का क्या कहना! को तक को दिक्कत है। डॉक्टर कहता है, आइसक्रीम मत खाओ, मगर खा लेते हैं! डॉक्टर कहता है, फलानी चीज मत खा लेना; लेकिन कैसे छोड़े, नहीं छोड़ा जाता। फिर खा लेते हैं। फिर तकलीफ उठा लेते हैं। छोटा बच्चा था, उसको फल में रस था। और फल रसीला था। लेकिन पेट के लिए दुखदायी है। उसके बाप ने क्या किया? उसने कई बार उसे मना किया। वह सुनने को राजी न था। वह चोरी से खाने लगा। तो बाप एक दिन एक टोकरी भर कर फल ले आया और उसने इसे बिठा लिया अपने पास और रख लिया हाथ में डंडा और कहा : 'तू खा!' गुरजिएफ तो समझा नहीं कि मामला क्या है। पहले तो बड़ा प्रसन्न हुआ कि बाप को हुआ क्या, दिमाग फिर गया है! क्योंकि हमेशा मना करते हैं, घर में फल आने नहीं देते हैं। मगर बाप इंडा ले कर बैठा था तो उसे खाना पड़ा। पहले तो रस लिया-दो-चार आठ-दस फल-इसके बाद तकलीफ होनी शुरू हुई। मगर बाप है कि इंडा लिये बैठा है, वह कहता है कि यह टोकरी पूरी खाली करनी पड़ेगी। उसकी आख से आंसू बहने लगे, और खाया नहीं जाता। अब वमन की हालत आने लगी और बाप डंडा लिये बैठा है और वह कहता है कि फोड़ दूंगा, हाथ-पैर तोड़ दूंगा, यह टोकरी खाली करनी है! उसने टोकरी खाली करवा कर छोड़ी। पंद्रह दिन गुरजिएफ बीमार रहा, उल्टी हुई दस्त लगे; लेकिन उसने बाद में लिखा है कि उस
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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