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________________ वही हो सकता है जिसकी तुम्हारे भीतर तैयारी है। और जब बाहर से कोई शब्द की अमृत वर्षा होती है और तुम्हारी तैयारी से मेल खा जाता है तो एक अपूर्व अनुभूति की शुरुआत होती है ! यथातथोपदेशेन......। जैसे-तैसे भी हाथ में कुछ बूंदें भी लग जाएं तो सागर का पता मिल जाता है; कृतार्थ हो जाता है व्यक्ति।'कृतार्थ' शब्द बड़ा सुंदर है। कृतार्थ का अर्थ होता है : सुन कर ही न केवल अर्थ प्रगट हो जाता है जीवन में, बल्कि कृति भी प्रगट हो जाती है। सुन कर ही कृति और अर्थ दोनों फलित हो जाते हैं। कभी ऐसा होता है, कोई बात सुनकर ही तुम बदल जाते हो। तब तुम कृतार्थ हुए। सुना नहीं कि बदल गये! जैसे अब तक जो बात सुनी नहीं थी, उसके लिये तुम तैयार तो हो ही रहे थे। बस कोई आखिरी बात को जोड़ देने वाला चाहिये था। किसी ने जोड़ दी तो कृतार्थ हो गये। फिर सुन कर कुछ करना नहीं पड़ता - सुनने में ही हो जाता है। यह तो श्रेष्ठतम साधक की अवस्था है, सत्वबुद्धि वाले साधक की। वह बुद्ध को, महावीर को, कृष्ण को या अष्टावक्र को सुन कर ऐसा नहीं पूछता महाराज आपकी बात तो समझ में आ गई, अब इसे करें कैसे! समझ में आ गई तो बात खतम हो गई, अब करने की बात पूछनी नहीं है। तुम्हें मैंने दिखा दिया कि यह दरवाजा है, जब बाहर जाना हो तो इससे निकल जाना; यह दीवाल है, इससे मत निकलना, अन्यथा सिर टूट जाएगा। तुम कहोगे समझ में आ गई बात, लेकिन मन तो हमारा दीवार से निकलने का ही करता है। इससे हम कैसे बचें? और मन तो हमारा दरवाजे से निकलने में उत्सुक ही नहीं होता। इसको हम कैसे करें।' तो बात समझ में नहीं आई। सिर्फ बुद्धि ने पकड़ ली, तुम्हारे प्राणों तक नहीं पहुंची। तुम इसके लिए राजी न थे। अभीतुम्हें दीवार में ही दरवाजा दिखता है, इसलिए मन दीवार से ही निकलने का करता है। लेकिन जो बहुत बार दीवार से टकरा चुका है, उसे दिखाते ही, कहते ही, शब्द पड़ते ही बोध आ जाएगा। वह कृतार्थ हो गया। वह यह नहीं पूछेगा. 'कैसे करें?' वह कहेगा कि बस अभी तक एक जरा-सी कड़ी खोई-खोई सी थी, वह आपने पूरी कर दी । गीत ठीक बैठ गया। अब कोई अड़चन न रही। 'सत्वबुद्धि वाला पुरुष जैसे-तैसे यानी थोड़े उपदेश से भी कृतार्थ होता है। असतबुद्धि वाला पुरुष आजीवन जिज्ञासा करके भी उसमें मोह को ही प्राप्त होता है।' और बड़े आश्चर्य की बात है, सत्वबुद्धि वाला व्यक्ति तो ज्ञान से मुक्त होता है। ज्ञान मुक्ति लाता है। और असतबुद्धि वाला व्यक्ति मुक्ति को प्राप्त नहीं होता, उल्टे ज्ञान के ही मोह में पड़ जाता है। इसी तरह तो लोग हिंदू बन कर बैठ गये, मुसलमान बन कर बैठ गये, ईसाई बन कर बैठ गये। जीसस से उन्हें मुक्ति नहीं मिली; जीसस को बंधन बना कर बैठ गये। अब जीसस की उन्होंने हथकड़ियां ढाल लीं। राम ने उन्हें छुटकारा नहीं दिलवाया; राम तो उन्हें छुटकारा ही दिलवाते थे, लेकिन तुम छूटना नहीं चाहते। तो तुम राम की भी जंजीर डाल लेते हो- तुम हिंदू बन कर बैठ गये । कोई जैन बन कर बैठ गया है, कोई बौद्ध बन कर बैठ गया। बुद्ध बनना था, बौद्ध बन कर बैठ गये। बुद्ध बनते तो मुक्त हो
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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