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________________ अब वृक्ष इसको छुटकारा देगा, छुट्टी देगा, इसे मुक्त करेगा, ताकि वृक्ष अपने रस को किसी दूसरे कच्चे फल में बहा सके; ताकि कोई दूसरा कच्चा फल पके। सत्वबुद्धि का मेरा अर्थ है. जीवन के अनुभव से ही तुम्हारे जीवन की शैली निकले तो तुम धीरे - धीरे सत्व को उपलब्ध होते जाओगे। और जब कोई सत्व को उपलब्ध व्यक्ति सुनने आता है तो तत्क्षण बात समझ में आ जाती है। कोड़ा नहीं, कोड़े की छाया भी काफी है। अब जिस घोड़े ने कभी कोड़ा ही नहीं देखा और कोई कभी इस पर सवार भी नहीं हुआ और कभी किसी ने कोड़ा मारा भी नहीं और जिसे कोड़े की पीड़ा का कोई अनुभव नहीं है, वह कोड़े की छाया से नहीं चलने वाला। वह तो कोड़े की चोट पर भी नही चलेगा। वह तो कोड़े की चोट से हो सकता है और अड़ कर खड़ा हो जाए। जिस बात का अनुभव नहीं है उस बात से हमारे जीवन की समरसता नहीं होती । 'सत्वबुद्धि वाला पुरुष जैसे-तैसे थोड़े से उपदेश से भी कृतार्थ होता है । ' जैसे -तैसे ! सत्व बुद्धिमान् यथातथोपदेशेन.......। ऐसा छोटा-मोटा भी मिल जाए उपदेश, बुद्ध के वचनों की एक कड़ी पकड़ में आ जाए, बस काफी हो जाती है। बुद्ध के दर्शन मिल जाएं, काफी हो जाता है। किसी जाग्रत पुरुष के साथ दो घड़ी चलने का मौका मिल जाए, काफी हो जाता है। लेकिन यह काफी तभी होता है जब जीवन के अनुभव से इसका मेल बैठता हो । बुद्ध बैठे हों और छोटे-छोटे बच्चों को तुम वहां ले जाओ तो इन पर तो कोई परिणाम नहीं होगा। इनको तो शायद बुद्ध दिखाई भी न पड़ेंगे। शायद ये बच्चे हंसी-ठिठौली भी करेंगे कि 'यह आदम बैठा हुआ वृक्ष के नीचे कर क्या रहा है! अरे कुछ करो! यह आख बंद करके क्यों बैठा है?' शायद छोटे बच्चों को थोड़ा-बहुत कुतूहल पैदा हो सकता है क्योंकि यह बड़ा भिन्न दिखाई पड़ता है, लेकिन कुतूहल से ज्यादा कुछ भी पैदा नहीं होगा। जिज्ञासा पैदा नहीं होगी कि इससे कुछ पूछें। पूछने को अभी जीवन में प्रश्न कहां! अभी जीवन समस्या कहां बना ! अभी जीवन उलझा कहां! अभी तो जीवन की धारा में बहे ही नहीं। अभी जीवन का कष्ट नहीं भोगा; जीवन की पीड़ा नहीं मिली। अभी काटे नहीं चुभे। तो पूछने को क्या है? जानने को क्या है? लेकिन, अगर कोई जीवन से पका हुआ जीवन से थका हुआ, जीवन के अनुभव से गुजर कर आया हो; जीवन की व्यर्थता देख कर आया हो, असार को पहचाना हो, दिख गयी हो राख - तो फिर बुद्ध की बात समझ में आएगी । प्रत्येक चीज के समझने की एक घड़ी, ठीक घड़ी, न हो तो कुछ समझ में आता नहीं। तुम्हारे सामने कोई वानगाग की सुंदरतम कलाकृति रख दे लेकिन अगर तुम्हें कलाकृतियों का कोई रस नहीं है तो शायद तुम नजर भी न डालोगे। तुम्हारे सामने कोई सुंदरतम गीत गाए लेकिन गीत का तुम्हें कोई अनुभव नहीं, तुम्हारे प्राण में कोई वीणा गीत से बजती नहीं, तो तुम्हें कुछ भी न होगा। तुममें
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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