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________________ अज्ञानी कहा जाता है। बाकी दोनों अज्ञानी हैं। सुकरात ने कहा है कि जब मैंने जान लिया कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं उसी दिन प्रकाश हो गया। उपनिषद कहते हैं. जो कहे मैं जानता हूं जान लेना कि नहीं जानता। जो कहे मुझे कुछ पता नहीं, उसका पीछा करना, हो सकता है उसें पता हो ! जिंदगी बड़ी पहेली है। तुम एक बार अज्ञान को स्वीकार तो करो! और सत्य को स्वीकार न करोगे तो करोगे क्या? कब तक झुठलाओगे 2: बात साफ है कि हमें कुछ भी पता नहीं । न हमें पता है हम कहां से आते; न हमें पता है हम कहां जाते; न हमें पता है हम कोन है - अब और क्या चाहिए प्रमाण के लिए? रास्ते पर कोई आदमी मिल जाए चौराहे पर और तुम उससे पूछो कहां से आते हो, वह कहता है पता नहीं; तुम कहो, कहां जाते; वह कहता है, पता नहीं - तो तुम्हें कुछ शक होगा कि नहीं? और तुम पूछो तुम हो कोन वह कहे कि पता नही - तो तुम क्या कहोगे इस आदमी को ? 'तू पागल है! तुझे यह भी पता नहीं कहां से आता है, कहां जाता है। खैर इतना तो पता होगा कि तू कोन है!' वह कहे कि मुझे कुछ पता नहीं। 'नाम- धाम ठिकाना?' कुछ पता नहीं। तो तुम कहोगे कि यह आदम या तो पागल है या धोखा दे रहा है। हमारी दशा क्या है? जीवन के चौराहे पर हम खड़े हैं। जहां खड़े हैं, वहीं चौराहा है, क्योंकि हर जगह से चार राहें फूटती हैं, हजार राहें फूटती हैं। जहां खड़े हैं वहीं विकल्प हैं । कोई तुमसे पूछे कहां से आते हो, पता है? झूठी बातें मत दोहराना। सुनी बातें मत दोहराना । यह मत कहना कि हमने गीता में पढ़ा है। उससे काम न चलेगा। गीता में पढ़ा है, उससे तो इतना ही पता चलेगा कि तुम्हें कुछ भी पता नहीं है; नहीं तो गीता में पढ़ते ? अगर तुम्हें पता होता कहां से आते हो, तो पता होता, गीता की क्या जरूरत थी? तुम यह मत कहना कि कुरान में सुना है कि कहां से आते कि भगव के घर से आते। न तुम्हें भगवान का पता है न तुम्हें उसके घर का पता है तुम्हें कुछ भी पता नहीं । लेकिन आदमी का अहंकार बड़ा है। अहंकार के कारण वह स्वीकार नहीं कर पाता कि मैं अज्ञानी हूं। और अहंकार ही बाधा है। स्वीकार कर लो, अहंकार गिर जाता है। अज्ञान की स्वीकृति से ज्यादा और महत्वपूर्ण कोई मौत नहीं है, क्योंकि उसमें मर जाता है अहंकार, खतम हुआ, अब कुछ बात ही न रही। तुम अचानक पाओगे हलके हो गये! अब कोई डर न रहा। सच्चे हो गये! अब लोग सिखलाते हैं. झूठ मत बोलो। और जो सिखलाते हैं झूठ मत बोलो, उनसे बड़ा झूठ कोई बोलता दिखाई पड़ता नहीं। झूठ मत बोलो, समझाते हैं। और उनसे पूछो, दुनिया किसने बनाई ? वे कहते हैं : भगवान ने बनाई । जैसे ये मौजूद थे। थोड़ा सोचो तो कि झूठ की भी कोई सीमा होती है! दूसरे लोग झूठ बोल रहे हैं, छोटी-मोटी झूठ बोल रहे हैं। कोई कह रहा है कि हमारे पास दस हजार रुपये हैं और हैं हजार रुपये, कोई बड़ा झूठ नहीं बोल रहा है। हजार रुपये तो हैं। सभी ऐसा झूठ बोलते हैं। घर में मेहमान आ जाता है, पड़ोस से सोफा मांग लाते हैं, उधार दरी ले आते हैं, सब ढंग-ढौंग
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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