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________________ होता है कोई एकाध व्यक्ति। वर्ग होता है? जमात! कोई भीड़-भाड़ होती है? एक बुद्ध काफी होता है और करोड़ों दीये जल जाते हैं। तुम इसके पहले कि किसी के घर में रोशनी लाने की चेष्टा करो, ठीक से टटोल लेना, तुम्हारे भीतर रोशनी है? इसलिए मेरा सारा ध्यान और सारा जोर एक ही बात पर है. तुम्हारे चैतन्य का जागरण! इसलिए ध्यान पर मेरा इतना जोर है। लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं कि इतनी समस्याएं हैं और आप ध्यान में ही मेहनत लगाये रखते हैं! और समस्याओं में उलझा है समाज, इनको हल करवाइये ! मैं उनको कहता हूं कि वह कोई हल होने वाली नहीं, जब तक कि ध्यान न फैल जाये। ध्यान फैले तो संभव है कि समस्याओं का समाधान हो जाये। ध्यान करो, ध्यान करवाओ ! आखिरी प्रश्न : मेरे एक वरिष्ठ मित्र हैं, उन्हें आदर करता हूं। धर्म में गहरी रुचि है उनकी और उन्हें आपका सत्संग भी कभी उपलब्ध हुआ था। मैं जब भी उनसे मिलता हूं तो बातचीत के कम में वे मुझे बहुत मित्रतापर्वक तुलसीदास का यह वचन सुना देते हैं: 'मूरख हृदय न चेत जो गुरु मिलहि विरंचि सम और इधर कुछ समय से मुझे आपके प्रसंग में तुलसीदास का यह वचन स्मरण हो आता है, यद्यपि मानने का जी नहीं होता। अपनी मूर्खता से कैसे निपट भगवान? निपटने की उतनी बात नहीं, स्वीकार करने की बात है। निपटने में तो फिर जाल फैल जायेगा। तो मूर्ख ज्ञानी बन सकता है, मगर अज्ञान न मिटेगा । स्वीकार की बात है। स्वीकार कर लो कि मैं अज्ञानी हूं । और जैसे ही तुमने स्वीकार किया, उसी विनम्रता में, उसी स्वीकार में ज्ञान की किरण आनी शुरू होती है। अज्ञान को स्वीकार करना ज्ञान की तरफ पहला कदम है- अनिवार्य कदम है। तो अगर यह मानने का मन नहीं होता कि मैं और मूरख., तो फिर तुम जो भी करोगे वह गलत होगा। क्योंकि फिर तुम यही कोशिश करोगे कि इकट्ठा कर लो कहीं से ज्ञान, थोड़ा संग्रह कर लो ज्ञान, छिपा लो अपने अज्ञान को, ढांक लो वस्त्रों में, सुंदर गहनों में ओढ़ा दो। लेकिन इससे कुछ मिटेगा नहीं, भीतर अज्ञान तो बना ही रहेगा। स्वीकार कर लो ! अंगीकार कर लौ ! सचाई यही है। और इसको तुलना के ढंग से मत सोचो कि तुम मूरख हो और दूसरे ज्ञानी हैं। कोई ज्ञानी नहीं है। दुनिया में दो तरह के अज्ञानी हैं- एक, जिनको पता है; और एक, जिनको पता नहीं। जिनको अपने अज्ञान का पता है उन्हीं को ज्ञानी कहा जाता है, और जिनको अपने अज्ञान का पता नहीं, उन्हीं को
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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