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________________ नहीं कि चुरा लो और वस्तुओं का कोई मूल्य नहीं था। जहां जीवन का मूल्य है, वहा वस्तुओं का क्या मूल्य है! मगर ये समाज-सेवक हैं! वे तो बहुत घबरा गए। वे कहने लगे : 'आपका मतलब है कि मैंने जीवन व्यर्थ गंवाया!' मैंने कहा : 'व्यर्थ नहीं गंवाया है, बड़े खतरनाक ढंग से गंवाया है। दूसरों की जान ली! तुम अपना गंवाते, तुम्हारा जीवन है।' ___ वे बोले कि आप मुझे बहुत उदास किए दे रहे हैं। मैं बहुत लोगों के पास गया सबने मुझे सर्टिफिकेट दी है। __ मैंने कहा. 'उनकी भी गलती है। वे भी तुम्हारे जैसे ही समाज सेवक हैं जिन्होंने तुम्हें सर्टिफिकेट दी है।' दूसरे की सेवा करने जाना मत, जब तक अपने घर का दीया न जल गया हो; जब तक बोध बिलकुल साफ न हो जाये, जब तक तुम्हारे भीतर का प्रभु बिलकुल निखर न आये तब तक भूल कर भी सेवा मत करना। भूल कर उपदेश मत देना। भूल कर किसी की समस्या का समाधान मत करना। तुम्हारा समाधान और भी महंगा पड़ेगा। बीमारी ठीक, तुम्हारी औषधि और जान लेने वाली हो जाएगी। शायद बीमार कुछ दिन जिंदा रह लेता; तुम्हारी औषधि बिलकुल मार डालेगी। अगर तुम दो सौ साल पहले के बड़े-बड़े विचारकों की किताबें उठा कर पढ़ो तो वे सब कहते थे : जिस दिन विश्व में सभी लोग शिक्षित हो जायेंगे, परम शांति का राज्य हो जाएगा। अब पश्चिम में सब शिक्षित हो गये, इससे ज्यादा अशांति का कभी कोई समय नहीं रहा। अब यह बड़ी हैरानी की बात है। जिन्होंने कहा, होश में नहीं थे, बेहोश थे। शिक्षा से शांति का क्या लेना-देना! शिक्षा तो अशांति लाती है, क्योंकि शिक्षा महत्वाकांक्षा देती है। तो तुम पूछते हो कि 'विकार-जनित समस्याएं हैं, इनका प्रबुद्ध वर्ग कैसे समाधान करे!' अधिकतर सौ में निन्यानबे समस्याएं तो इस प्रबुद्ध वर्ग के कारण ही हैं। यह प्रबुद्ध वर्ग कृपा करे और अपनी प्रबुद्धता का प्रचार न करे तो कई समस्याएं तो अपने आप समाप्त हो जाएं। करीब-करीब मामला ऐसा है. प्रबुद्ध वर्ग ही समस्या पैदा करता है, प्रबुद्ध वर्ग ही उसको हल करने का उपाय करता है। ___ मैंने सुना है, एक आदमी गाव में जाता, रात में लोगों की खिड़कियों पर कोलतार फेंक देताकांच पर, दरवाजों पर। तीन-चार दिन बाद उसका पार्टनर-स्व ही धंधे में थे-उस गांव में आता और चिल्लाता : किसी की खिड़की पर कोलतार तो नहीं है, साफ करवा लो! करवाना ही पड़ता, क्योंकि वह लोगों की खिड़की पर कोलतार...| किसी को यह पता भी नहीं चलता कि दोनों साझेदार हैं, एक ही धंधे में हैं; आधा काम पहला करता है, आधा दूसरा करता है। जब एक सफाई करता रहता है एक गांव में, तो दूसरा दूसरे गांव में तब तक कोलतार फेंक देता है। ऐसे धंधा खूब चलता है। प्रबुद्ध वर्ग, जिसको तुम कहते हो, वही समस्याएं पैदा करता है, वही समस्याओं के हल करता है। प्रबुद्ध वर्ग प्रबुद्ध वर्ग नहीं है। प्रबुद्धों का वर्ग हो भी नहीं सकता। सिंहों के नहीं लेहड़े, संतो की नहीं जमात! कभी बुद्ध
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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