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________________ हैं। जीवन लगा दिया। बड़े उससे भरे थें-सर्टिफिकेट राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के! और इन लोगों का काम ही है सर्टिफिकेट देना, कुछ और काम दिखाई पड़ता नहीं। सब रखे थे फाइल बना कर। कहा कि मैंने इतनी सेवा की। वे मुझसे भी चाहते थे। मैंने कहा कि मैं नहीं दूंगा कोई सर्टिफिकेट, क्योंकि मैं पहले उनसे पूछं आदिवासियों से-कि वे शिक्षित होना चाहते हैं? उन्होंने कहा. 'आपका मतलब?' मैंने कहा : 'मतलब मेरा यह है कि जो शिक्षित हैं, उनसे तो पूछो कि शिक्षा मिल कर मिल क्या गया उनको? रो रहे हैं! और तुम बेचारे गरीबों को, उनको भी शिक्षित किए दे रहे हो। वे भले हैं। न उनमें महत्वाकांक्षा है न दिल्ली जाने का रस है। तुम उनको शिक्षा देने में लगे हो। तुम जबर्दस्ती उनको पिला रहे हो शिक्षा। तुम पहले यह तो पक्का कर लो कि जो शिक्षित हो गये हैं उनके जीवन में कोई फूल खिले हैं?' वे थोड़े बेचैन हुए। उन्होंने कहा, 'यह मैंने कभी सोचा नहीं।' मैंने कहा. 'कितने साल से सेवा कर रहे हो?' 'कोई चालीस साल हो गए।' सत्तर साल के करीब उनकी उम्र है। मैंने कहा. चालीस साल सेवा करते हो गए, सेवा करने के पहले तुमने यह भी न सोचा कि शिक्षा लाई क्या है दुनिया में! उधर अमरीका में दूसरी हालत चल रही है। वहां बड़े से बड़े शिक्षा शास्त्री कह रहे हैं कि बंद करो। डी एच. लारेंस ने लिखा है कि सौ साल के लिए सब विश्वविदयालय और सब स्कूल बंद कर दो तो आदमी के करीब-करीब नब्बे प्रतिशत उपद्रव बंद हो जाएं। इवान इलिच ने अभी घोषणा की है, वह एक नयी योजना है उसकी : 'डीस्कूलिग सोसायटी। वह कहता है, स्कूल समाप्त करो। स्कूल से समाज को मुक्त करो। । मैंने उनसे पूछा : 'चालीस साल सेवा करने के शुरू करते वक्त यह तो सोचा होता कि तम इनको दोगे क्या! आदिवासी तुमसे ज्यादा प्रसन्न है, तुमसे ज्यादा मस्त, प्रकृति के तुमसे ज्यादा करीब, रूखी-सूखी से राजी, अकिंचन में बड़ा धनी, सांझ तारों में नाच लेता है, रात सो जाता है-ऐसे अहोभाव से!' बट्रेंड रसेल ने लिखा है कि जब पहली दफा मैंने एक जंगल में आदिवासियों को देखा तो मेरे मन में ईर्ष्या पैदा हो गई कि काश मैं भी ऐसा ही नाच सकता, लेकिन अब तो मुश्किल है! काश, इसी तरह धुंघरू बांध कर ढोल की थाप पर मेरे पैर भी फुदकते! नाचते आदिवासियों को देख कर ईर्ष्या नहीं होती? उनकी आंखों की सरलता देख कर ईर्ष्या नहीं होती? जहां-जहां शिक्षा पहुंची है वहां वहां सारा उपद्रव पहुंचा। बस्तर में आज से तीस साल पहले तक कोई हत्या नहीं होती थी आदिवासियों में। और अगर कभी हो जाती थी तो जो हत्या करता था वह खुद सौ पचास मील चल कर मजिस्ट्रेट को खबर कर देता था जा कर पुलिस में कि मैंने हत्या की, मुझे जो दंड देना हो वह दे दें। चोरी नहीं होती थी। लोगों के पास पहली तो बात कुछ था ही
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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