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________________ बुद्ध के पास एक आदमी आया और उसने कहा कि मुझे बतायें कि मैं कैसे लोगों की सेवा करूं? बुद्ध ने उसकी तरफ देखा और कहते हैं, ऐसा कभी न हुआ था, उनकी आख में एक आंसू आ गया। वह आदमी थोड़ा घबराया। उसने कहा कि आपकी आंख में आंसू मामला क्या है? बुद्ध कहा : तुम पर मुझे बड़ी करुणा आ रही है। अभी तूने अपनी ही सेवा नहीं की, तो दूसरों की सेवा कैसे करेगा? अक्सर ऐसा होता है कि दूसरों की सेवा करने वाले वे ही लोग हैं जो अपनी समस्याओं से भागना चाहते हैं। मैं बहुत से समाज सेवकों को जानता हूं। इनके जीवन में कोई शांति नहीं है मगर ये दूसरों के जीवन में शांति लाने में लगे हैं। और अक्सर इनके कारण दूसरों के जीवन में अशांति आती है, शांति नहीं। अगर दुनिया के समाज सेवक कृपा करके अपनी- अपनी जगह बैठ जायें तो काफी सेवा हो जाये। मगर वे बड़ा उपद्रव मचाते हैं [ मैंने सुना है, एक ईसाई पादरी ने अपने स्कूल में बच्चों को कहा कि कम से कम प्रतिदिन एक अच्छा काम करना ही चाहिए। दूसरे दिन उसने पूछा कि कोई अच्छा काम किया? तीन लड़के खड़े हो गये। उसने पहले से पूछा : तुमने क्या अच्छा काम किया? उसने कहा. मैंने एक की स्त्री को सड़क पार करवाई। दूसरे से पूछा उसने कहा. मैंने भी एक बूढ़ी स्त्री को सड़क पार करवाई। पादरी को लगा कि दोनों को की स्त्रियां मिल गईं! फिर उसने कहा कि हो सकता है, कोई की स्त्रियों की कमी तो है नहीं। तीसरे से पूछा कि तूने क्या किया? उसने कहा कि मैंने भी एक की स्त्री को सड़क पार करवाई। उसने कहा तुम तीनों को की स्त्रियां मिल गईं? उन्होंने कहा. तीन नहीं थीं, एक ही बूढ़ी स्त्री थी। और सड़क पार होना भी नहीं चाहती थी, बामुश्किल करवा पाये। मगर करवा दी ! ये जो जिनको तुम समाज-सेवक कहते हो, ये तुम्हारी फिक्र ही नहीं करते कि तुम पार होना भी चाहते हो कि नहीं, ये तुमको पार करवा रहे हैं। ये कहते हैं : हम तो पार करवा कर रहेंगे। ये तुम्हारी तरफ देखते ही नहीं कि तुम सेवा करवाने को राजी भी हो! मैं राजस्थान में यात्रा पर था, उदयपुर से लौटता था। कोई दो बजे रात होंगे, कोई आदमी गाड़ी में चढ़ आया। वह एकदम मेरे पैर दाबने लगा। मैंने कहा : 'भाई, तू सोने भी दे!' उसने कहा. 'आप सोये, मगर हम तो सेवा करेंगे।' 'तू सेवा करेगा तो हम सो कैसे पायेंगे?' उसने कहा : ' अब आप बीच में न बोलें । उदयपुर में भी मैं आया था, लेकिन लोगों ने मुझे अंदर न आने दिया। तो मैंने कहा, आप लौटोगे तो ट्रेन से, मेरे गांव से तो गुजरोगे! अब मैं दो-तीन स्टेशन तो सेवा करूंगा ही। आप बीच में बोलें ही मत ।' मैंने कहा : 'तब ठीक है, तब मामला ही नहीं है कोई। अगर यह सेवा है तो फिर तू कर ।' अक्सर जो तुम्हारी सेवा कर रहे हैं, कभी तुमने गौर से देखा कि तुम करवाना भी चाहते हो? जिनकी सेवा कर रहे हैं, वे सेवा करवाना चाहते हैं? एक मित्र मेरे पास आये, वे आदिवासियों को शिक्षा दिलवाने का काम करते हैं, स्कूल खुलवाते
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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