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________________ जब मृग-जल में परिवर्तित हो मुझ पर मेरा अरमान हंसा, जिसमें अपने प्राणों को भर कर देना चाहा अजर- अमर जब विस्मृति के पीछे छिपकर मुझ पर मेरा मधु -गान हंसा मेरे पूजन-आराधन को मेरे संपूर्ण समर्पण को जब मेरी कमजोरी कह कर मेरा पूजित पाषाण हंसा। एक दिन तुम पाओगे. जो तुमने बसाया है वही तुम पर हंस रहा है, जो घर तुमने बसाया है वही तुम्हारा व्यंग्य कर रहा है। यह सारा संसार तुम्हारी ठिठोली करेगा। क्योंकि यहां दौड़ो, मगर पहुंच कोन पाता है! स्पृहा झूठी दौड़ है, मृग-मरीचिका है। चेष्टा होती है, फल कुछ भी हाथ नहीं लगता है, जैसे कोई रेत से तेल निकालने की कोशिश में लगा हो। थकते हैं लोग, मरते हैं लोग। छोटे बड़े गरीबअमीर सभी स्पूहा से भरे हैं। यह बहुत कठिन नहीं है कि तुम धन छोड़ कर गरीब हो जाओ तुम धन छोड़ कर भिखारी हो जाओ। यह बहुत कठिन नहीं है। क्योंकि जिसके पास धन है उसको दिखाई पड़ जाता है कि धन व्यर्थ है तब वह दूसरे छोर पर चला; वह गरीब होने लगा। लेकिन फिर भी स्पहा जारी रहती है। ___ मैंने सुना है, एक यहूदी कथा है। एक आदमी ने धर्मगुरु के प्रवचन के बाद खड़े हो कर कहा कि जब आपके वचन सुनता हूं तो मैं ना कुछ हो जाता हूं। जब आया था मेरे पास कुछ नहीं था; आज मेरे पास करोड़ों डालर हैं। फिर भी जब तुम्हारे वचन सुनता हूं तो ना कुछ हो जाता हूं। दूसरे आदमी ने खड़े हो कर कहा. मैं भी जब आया था इस देश में तो एक कोड़ी पास न थी; आज अरबों डालर हैं। पर मेरे मित्र ने ठीक कहा। जब मैं सुनता हूं तुम्हारे वचन तुम्हारे अमृत बोल, तो एकदम शून्यवत हो जाता हूं कुछ भी नहीं बचता। मैं कुछ भी नहीं हूं तुम्हारे सामने। तुम्हारा धन असली धन है। एक तीसरे आदमी ने खड़े होकर कहा कि मेरे दोनों साथियों ने जो कहा, ठीक ही कहा है। मैं भी जब आया था तो कुछ भी न था; अब मैं पोस्ट- आफिस में पोस्टमैन हो गया हूं। लेकिन जब तुम्हारे वचन सुनता हूं अहा शून्य हो जाता हूं। पहले धनपति ने क्रोध से देखा और दूसरे धनपति से कहा. 'सुनो, कोन ना-कुछ होने का दावा कर रहा है?'
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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