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________________ यहां कुछ है ही नहीं जिसको तुम चुरा ले जाओगे। यहां तो जो चुराया जा सकता है हमने जान ही लिया कि व्यर्थ है। लेकिन स्पृहा के रहते हुए लोग अगर धर्म की दुनिया में भी आते हैं तो भी उनका पुराना संसार जारी रहता है। सुना है मैंने नहीं थी कबीर की चादर में कहीं कोई गांठ खुले थे चारों छोर, फिर भी संध्या- भोर टटोलती रही भक्तों की भीड़ कि कहीं होगा जरूर कहीं होगा चिंतामणि - रतन नहीं तो बाबा काहे को करते इतना जतन ! कबीर ने कहा है न : खूब जतन कर ओढी चदरिया झीनी - झीनी बीनी खूब जतन कर ओढ़ी चदरिया, ज्यों की त्यों धरि दीन्ही । तो भक्तों को लगा रहा होगा कि इतने जतन से ओढ़ रहे हैं चादर, बाबा इतना जतन कर रहे हैं- मतलब? कहीं कुछ बांध-बंध लिया है? कोई रतन ! नहीं थी कबीर की चादर में कहीं कोई गांठ खुले थे चारों छोर, फिर भी संध्या- भोर टटोलती रही भक्तों की भीड़ कि होगा कहीं चिंतामणि रतन नहीं तो बाबा काहे को करते इतना जतन ! तुम धर्म की दुनिया में भी जाते हो तो स्पृहा छोड़ कर थोड़े ही जाते हो। स्पृहा के कारण ही जाते हो। इसलिए तो मंदिर में जाते हो, पहुंच कहां पाते हो पटकते हो सिर मूर्तियों के सामने, लेकिन भगवान कहां प्रगट हो पाता है! स्पृहा से भरे चित्त में भगवान के लिए जगह नहीं है। स्पृहा से खाली चित्त शून्य चित्त है। समाधिस्थ ! वहीं प्रभु विराजमान होता है। उसे निमंत्रण न दे सकोगे। स्पृहा की गंदगी और धुएं में तुम और एक न एक दिन तुम अपनी स्पृहा में दौड़ कर जो इकट्ठा कर लोगे, तुम्हीं पर हंसेगा। धन धनी पर हंसता है एक दिन, क्योंकि जाना पड़ता है खाली हाथ। जीवन भर भरने की कोशिश की, भरने की कोशिश मै ही खाली रह गए। तुम्हारे महल तुम्हारी ही ठिठोली करेंगे। तुम्हारे पद तुम्हारा ही व्यंग्य करेंगे। तब रोक न पाया मैं आंसू जिसके पीछे पागल हो कर मैं दौड़ा अपने जीवन भर
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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