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________________ पुलक उन्मेष होता है लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है। पर हम डालते जाते हैं कंकडिया वासनाओं की, आकांक्षाओं की। फेंकते चट्टाने- कंकडिया दूर, फेंकते चट्टानें- महत आकांक्षाओं, महत्वाकांक्षाओं की । झील कंपती रहती है। सलिल को बहुत क्लेश होता है। साक्षी बनो, कर्ता होना छोड़ो। कर्ता होने से ही सारा उपद्रव है। पूरब का सारा संदेश एक छोटे-से शब्द में आ जाता है : साक्षी बनो! मेरा जीवन सबका साखी। कितनी बार दिवस बीता है, कितनी बार निशा बीती है। कितनी बार तिमिर जीता है, कितनी बार ज्योति जीती है। मेरा जीवन सबका साखी। कितनी बार सृष्टि जागी है कितनी बार प्रलय सोया है। कितनी बार हंसा है जीवन कितनी बार विवश रोया है। मेरा जीवन सबका साखी। देखते चलो। रमो मत किसी में, रुको मत कहीं, अटको मत कहीं। देखते चलो। जो आए - कोई भाव मत बनाओ; बुरा-भला मत सोचो। जो आए जैसा आए, जो लहर उठे-देखते चलो। और धीरे-धीरे तुम पाओगे : देखने वाला ही शेष रह गया, सब लहरें चली गईं, सलिल शांत हुआ। उस परम शांति केक्षण में सत्य का साक्षात्कार है। काले आपदः च लपक, - जब आता समय, होतीं घटनाएं। दैवात् एव......: । - ऐसा प्रभु - मर्जी से ! - सदा तृप्त है। इति निश्चयी. - ऐसा जिसने जाना अनुभव से नित्यम् तृपः। :|
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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