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________________ जाता, समय की धार भागी चली जा रही-तो भागो, तेजी करो, जल्दी करो! और कितनी ही जल्दी करो, कुछ खास परिणाम नहीं होता। जल्दी करने से और देरी हो जाती है। अभी मैं आकड़े पढ़ता था। न्यूयॉर्क में जब कारें नहीं चलती थीं तो आदमी की गति जितनी थी उतनी ही पचास साल के बाद फिर हो गई! और इतनी कारें, गति उतनी की उतनी हो गई। क्योंकि अब कारें सड़क पर इतनी हो गईं कि तुम पैदल जितनी देर में दफ्तर पहुंच सकते हो उससे ज्यादा देर लगने लगी कार में पहुंचने से यह बड़े मजे की बात हो गई। आदमी ने कार खोजी कि जल्दी पहुंच जाएगा। वह जल्दी पहुंचना तो दूर रहा क्योंकि जगह-जगह ट्रेफिक जाम हो जाता है, जगह-जगह हजारों कारें अटक जाती हैं। एक आदमी ने प्रयोग किया कि वह पैदल चल कर दफ्तर जाए। एक साल वह पैदल चल कर दफ्तर गया। और एक साल कार से दफ्तर गया। वह बड़ा चकित हुआ| हिसाब बराबर हो गया-स्व ही बराबर। जितनी देर कार से लगी पहुंचने में उतनी ही देर पैदल चल कर पहुंचने में लगी| और पैदल चल कर जो स्वास्थ्य को फायदा हुआ वह अलग और कार में जाने से जो पेट्रोल का खर्चा हुआ सो अलग। और कुछ समझ में नहीं आता कि क्या हुआ इतनी दौड़-धूप! कभी-कभी बहुत जल्दी करने से बहुत देर हो जाती है असल में जल्दी करने वाला मन इतना आतुर हो जाता है, इतने तनाव से भर जाता है, इतना रोगग्रस्त, इतने बुखार से भर जाता कि जब पहुंच भी जाता तब भी पहुंचता कहा उसका बुखार तो उसे पकड़े ही रहता है, उसके भीतर प्राण तो कंपते ही रहते हैं। वह भागा-भागी ही उसके जीवन का आधार हो जाता है। एक जगह से दूसरी जगह, दूसरी जगह से तीसरी जगह। एक नौकरी से दूसरी नौकरी, एक किताब से दूसरी किताब, एक गुरु से दूसरे गुरु वह भागता ही रहता! इस पत्नी को बदलो, इस पति को बदलो, इस धंधे को बदलो-वह भागता ही रहता! आखिर में वह पाता है कि भागा खूब, पहुंचे कहीं भी नहीं। जैसे कोल्हू का बैल चलता रहे, चलता रहे, अपनी ही लीक पर, गोल-गोल घूमता रहता। 'विपत्ति और संपत्ति दैवयोग से अपने समय पर आती हैं। ऐसा जो निश्चयपूर्वक जानता है वह सदा संतुष्ट, स्वस्थेंद्रिय हुआ न इच्छा करता है न शोक करता है।' जो आता है उसका साक्षी रहता है-दुख आया तो साक्षी, सुख आया तो साक्षी; धन आया तो साक्षी, निर्धन हो गया तो साक्षी। उसके भीतर एकरसता बनी रहती है। मत छुओ इस झील को कंकड़ी मारो नहीं पत्तियां डारो नहीं फूल मत बोते और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो। खेल में तुमको
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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