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________________ यथासुखं आसे......। इसलिए सुखपूर्वक स्थित हूं। आदमी कर्ता तो बना रहता है, फिर भी कहीं तो किसी चेतना के तल पर पता चलता रहता है कि अपना किया कुछ होता नहीं। कितनी चेष्टा तुम करते हो सफल होने की और असफलता हाथ लग जाती है। और कभी-कभी अनायास छप्पर फोड़ कर धन बरस जाता है। मैंने सुना है, एक यहूदी कथा है कि एक सम्राट ऐसा ही भरोसा करता था कि जो होना है होता है। गांव में एक भिखमंगा था-बस एक ही भिखमंगा था। पूरी राजधानी धन-संपन्न थी। अंधा था भिखमंगा। नहीं कि आंख से अंधा था; बस कुछ ऐसा अंधापन था कि जो भी करता गलत हो जाता, कि गलत ही चुनता, कि गलत दिशा में ही जाता। जब सारे लोग बाजार में बेच रहे होते, तब वह खरीदता; जब चीजों के दाम गिर रहे होते, तब वह फंस जाता। जो करता, गलत हो जाता। वजीरों को उस पर दया आई। उन्होंने सम्राट से कहा कि गांव पूरा धनी है; यह एक आदमी बेचारा उलझन में पड़ा रहता है, इसका कुछ भाग्य विपरीत है, इसकी बुद्धि उल्टी है। जब सारी दुनिया कुछ कर रही है, वह न करेगा। जब सब सफल हो रहे हैं, धन कमा रहे हैं, तब न कमाएगा। जब सारे लोग फसल बो रहे हैं तब वह बैठा रहेगा। जब मौसम है बीज डालने का तब बीज न डालेगा; जब मौसम चला जाएगा तब बीज डालेगा। तब बीज भी सड़ जाते हैं; वे फिर पैदा नहीं होते हैं। फसल तो आती नहीं, हाथ का भी चला जाता है। इस पर कुछ दया करें। सम्राट ने कहा :'दया करने से कुछ भी न होगा, लेकिन तुम कहते हो तो एक प्रयोग करें।' तो वह आदमी रोज सांझ को बाजार से लौटता अपने घर, तो एक पुल को पार करता है। सम्राट ने कहा :'पुल खाली कर दिया जाए। और अशर्फियों से भरा हुआ एक हंडा, बड़ा हंडा बीच पुल पर रख दिया। सम्राट और वजीर दूसरे किनारे बैठे हैं। पुल खाली कर दिया गया। कोई दूसरा जा न सकेगा। वही आदमी निकला अपनी धुन में, अपने सोच-विचार में, गुनगुनाता, ओंठ फड़फड़ाता। वजीर चकित हुए कि पुल पर पैर रखते ही उसने आंख बंद कर ली। वे बड़े हैरान हुए कि हद हो गयी। अब यह मूर्ख आंख क्यों बंद कर रहा है पुल पर! लेकिन वह आंख बंद करके और टटोल-टटोल कर पार हो गया और घड़े को वहीं छोड़ गया, क्योंकि अंधे को अब घड़ा क्या दिखायी पड़ता! जब वह उस तरफ पहुंच गया तो सम्राट ने कहा कि देखो.....:। उसे पकड़ा। उससे पूछा कि महापुरुष, आंख क्यों बंद की? उसने कहा कि कई दिन से मेरे मन में यह खयाल था कि एक दफे आंख बंद करके पुल पार करें। आज खाली देख कर कि पुल पर कोई भी नहीं है, मैंने सोचा कर लो, यह मौका फिर न मिलेगा। राह खाली है, गुजर जाओ। यह अनुभव के लिए कि आंख बंद करके चल सकते हैं कि नहीं। 'आज ही सूझा तुम्हें यह?' । 'नहीं, योजना तो पुरानी थी, लेकिन रास्ता कभी खाली नहीं होता था। लोग आ रहे जा रहे, धक्का- धुक्की हो जाए।' सम्राट ने कहा : जो होना होता है, होता है।'
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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