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________________ तुम कोई उपाय खोज लोगे असफल होने का या सफलता तुम्हें खोजती आ जाएगी। यह बहुत कठिन तत्व है, क्योंकि अहंकार के विपरीत इससे बड़ी और कोई बात नहीं हो सकती। तो सिर्फ जो अकिंचन है, जिसने अहंकार छोड़ा, वही इसे समझ पाएगा। यह कि अपना लक्ष्य निश्चित मैं न करता नहीं हूं यह कि अपनी राह मैं चुनता यह कि अपनी चाल मैंने नहीं साधी यह कि खाई–खंदकों को आंख मेरी देखने से चूक जाती यह कि मैं खतरा उठाने से हिचकता - झिझकता हूं यह कि मैं दायित्व अपना ओढ़ते घबड़ा रहा हूं - कुछ नहीं ऐसा शुरू में भी कहीं पर चेतना थी भूल कोई बड़ी होगी तुम सम्हाल तुरंत लोगे अंत में भी आश्वासन चाहता हूं अनगही मेरी नहीं है बांह ! कहीं ऊपर-ऊपर तो वह सब खेल चलता रहता है-हार का, जीत का पराजय का, सफलताविफलता, सुख-दुख का - लेकिन भीतर कहीं अचेतन की गहराई में ऐसा भी प्रतीत होता रहता है १ भूल कोई बड़ी होगी तुम सम्हाल तुरंत लोगे अंत में भी आश्वासन चाहता हूं अनगही मेरी नहीं है बांह ! वह भी बना रहता है। मनुष्य एक विरोधाभास है। एक तल पर कर्ता होने की कोशिश करता रहता है और एक तल पर जानता भी रहता है कि अकर्ता हूं और तुमने मेरी बांह पकड़ी है इसलिए सम्हाल लोगे। अपनी तरफ से सम्हलने की चेष्टा भी करता रहता है और भीतर कहीं जानता भी रहता है कि सम्हाल लोगे अगर भटकूगा बहुता इन दोनों दुविधाओं के बीच आदमी टूट जाता है। तो इस लिहाज से वे लोग भले जैसे पश्चिम के लोग, उन्होंने पहली बात छोड़ ही दी। वे मानते ही नहीं कि तुम सम्हाल लोगे, तुम हो ही नहीं! ईश्वर मर चुका। वह बात खतम हुई। वह बात आयी गयी, अब पुराण - कथा हो गयी। अब तो अपने से ही करना है जो करना है। आदमी ही कर्ता और कोई नहीं। तो पश्चिम के आदमी में तुम एक तरह की सरलता पाओगे, दुविधा नहीं। वह कर्ता मानता है अपने को । जनक में एक तरह की सुविधा पाओगे, वे अपने को कर्ता नहीं मानते, साक्षी मानते हैं। लेकिन पूरब का आदमी, कम से कम भारत का आदमी, बड़ी दुविधा में है - एक तल पर जानता है कि साक्षी हूं और एक तल पर मानता है कि कर्ता हूं इसलिए बड़ी खिंचावट है।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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