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________________ लगेगा : संयोग होगा; हो गया होगा सयोगवशात । ' लेकिन जीवन का सत्य यही है : जो होना है वही हो रहा है। जो होता है वही होता है। ऐसे सत्य को जान कर अगर पीछे सरक गए तो तुम्हारे जीवन में शांति के मेघ बरस जाएंगे। फिर अशांति कैसी? फिर सुख ही सुख है। 'किया हुआ कर्म कुछ भी वास्तव में आत्मकृत नहीं है। ऐसा यथार्थ विचार कर मैं जब जो कुछ कर्म करने को आ पड़ता है, उसको करके सुखपूर्वक स्थित हां' 'जो करने को आ पड़ता है। आ ही गया द्वार तो ठीक, निपटा लेता हूं बाकी न करने में कोई रस है, न न करने का कोई आग्रह है। कृतं किमपि नैव स्यादिति संचिज्य तत्वतः । यदा यत्कर्तुमायाति तत्कृत्वाउसे यथासुखम् कृतं किमपि एव न आत्मकृतं स्यात् ....... । नहीं, अपने किए कुछ नहीं होता। अपना किया कुछ भी नहीं है। सब किए पर परमात्मा के हस्ताक्षर हैं। तुम अपने हस्ताक्षर हटा लो और तुमने नर्क बनाना बंद कर दिया। तुम अपने हस्ताक्षर बड़े करते जाओ और तुम्हारा नर्क उतना ही बड़ा होता जाएगा। इति तत्वतः संचिज्य.......। ऐसा जान कर ऐसा अनुभव करके, ऐसे तत्व का साक्षात करके। यदा यत् कर्तुं आयाति तत् कृत्वा जो आ गया, जो सामने पड़ गया। आयाति तत् कृत्वा । उसे कर लेते हैं। इंकार भी नहीं है। आलस्य भी नहीं है। करने की कोई दौड़ भी नहीं है। करने का कोई पागलपन भी नहीं है। न तमस है न रजस है - वही सत्व का उदय है। तमस का अर्थ होता है: आलस्य से पड़े हैं। आग लग गई घर में, तो भी पड़े हैं। रजस का अर्थ होता है : घर में अभी आग नहीं लगी, इंश्योरेंस कराने गए हैं; कुआ खोद रहे हैं; इंतजाम कर रहे हैं, क्योंकि आग जब लगेगी तब थोड़े ही इंतजाम कर पाओगे। सारा इंतजाम कर रहे हैं। आग लगे या न लगे, इंतजाम में मरे जा रहे हैं। मकान तो बच जाएगा, इंतजाम करने वाला मर जाएगा - इंतजाम करने में ही । सत्व का अर्थ है : न स्वस, न तमस, दोनों का जहां संतुलन हो गया। घर में आग लग गई तो निकलेंगे, पानी भी लाएंगे, बुझाके भी। जो आ पड़ा, कर लेंगे। लेकिन उसके लिए कोई चितना, आयोजना, कल्पना कुछ भी नहीं है। जो वर्तमान दिखाएगा, करवाएगा - कर लेंगे।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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