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________________ आखिर कबीर ने कहा कि ठीक, शिकायत क्या है तुम्हारी? तो उन्होंने कहा कि आप और इसमें बड़ा फर्क है, यह आपसे बिलकुल विपरीत है। हमें शक है कि यह त्याग की बातें ऊपर-ऊपर से करता है, भीतर यह भोगी है। इसे आप अलग कर दें, इसके कारण आपकी बदनामी होती है। देखें, कल ही एक धनपति आपको हजार मुद्राएं भेंट करने आया था; आपने तो इंकार कर दिया; यह बाहर बैठा था दरवाजे पर, इसने पूछा :'अरे क्या लिए जाते हो?' तो उस धनपति ने कहा कि भेंट करने आया था कबीर को, वे तो लेते नहीं। तो कमाल ने क्या कहा? कमाल ने कहा कि अब यहां तक बोझ ढोया है, फिर वापिस बोझ ढो कर घर ले जाएगा! डाल दे यहीं! तो शिष्यों ने कहा कि यह तो बेईमानी है, चालबाजी है। कबीर तो समझते होंगे। उन्होंने कहा कि ठीक, तो कमाल को अलग कर देते हैं। कमाल का झोपड़ा अलग कर दिया गया। काशी नरेश कभी-कभी आते थे कबीर के पास। उन्होंने देखा कि कमाल दिखायी नहीं पड़ता। उन्हें कमाल में रुचि थी, रस था। पूछा: 'कमाल दिखायी नहीं पड़ता?' कबीर ने कहा कि शिष्य उसके बड़े पीछे पड़े थे, अलग कर दिया, पास के झोपड़े में है। कारण पूछा तो कारण बताया। तो सम्राट गया। उसने अपनी जेब से एक बहुमूल्य हीरा निकाला और कहा कि आपको भेंट करने आया हूं-कमाल से कहा। कमाल ने कहा : लाए भी तो पत्थर! खाएंगे कि पीएंगे इसको? इसका करेंगे क्या!' यह सुन कर सम्राट ने मन में सोचा कि अरे! और लोग कहते हैं कि भोगी और यह तो: इससे और महात्यागी क्या होगा! इतना बहुमूल्य हीरा शायद भारत में उस जैसा दूसरा हीरा न हो उस समय! तो जेब में रखने लगे। तो कमाल ने कहा :' अब ले आए, अब कहां वापस ले जाते हो! पत्थर ही है, डाल दो यहां!' तब जरा सम्राट को भी शक हुआतो उसने पूछा : कहां डाल दूं?' तो कमाल ने कहा 'अगर पूछते हो कहां डाल दूं तो फिर ले ही जाओ। क्योंकि फिर तुमने इसे पत्थर नहीं समझा, इसका मूल्य है तुम्हारे मन में| अरे कहीं भी डाल दों-पत्थर ही है!' लेकिन सम्राट कैसे मान ले कि पत्थर ही है। है तो बहुमूल्य हीरा तो कहा यहां झोपड़े में खोंस जाता हूं।' वह भी परीक्षा के लिए। सनौलियों की छप्पर थी, उसमें खोंस गया। सोचा कि मेरे जाते ही कमाल उसे निकाल लेगा। आठ दिन बाद वापिस आया। पूछा कमाल से कि मैं एक हीरा लाया था......:| कमाल ने कहा कि हीरा होता ही नहीं, लाओगे कहां से? सब पत्थर हैं! सम्राट ने कहा : चलो पत्थर सही! मैं यहां लगा गया था झोपड़े में उसका क्या हुआ? कमाल ने कहा: अगर किसी ने न निकाला हो तो वहीं होगा, तुम देख लो। वह हीरा वहीं खोंसा था। अब कमाल को समझना मुश्किल हो जाएगा। न तो भोगी इसे समझ पाएगा और न त्यागी इसे समझ पाएगा। यह परम अवस्था है। कबीर ने ठीक ही कहा कि इसका नाम कमाल है। लेकिन शिष्यों ने बड़े अर्थ लगाए। उन्होंने तो इसका यह अर्थ निकाला कि कमाल का तिरस्कार कर दिया। कबीर का एक वचन है : जूड़ा वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल!' तो शिष्य कहते हैं कि कमाल की निंदा में है यह वचन। कबीरपंथी कहते हैं निंदा में है, कि इस कमाल के पैदा होने से मेरा वंश नष्ट
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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