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________________ शाप'! कपड़े की दूकान! दिगंबर का मतलब: नग्न । मैंने उनसे कहा: कुछ तो शर्म खाओ ! महावीर को तो न उलझाओ! 'दिगंबर शाप ! तुम्हें पता है दिगंबर का अर्थ क्या होता है? और कपड़ा बेच रहे हो ? यह जरा सोचने जैसा है कि जिनका गुरु नग्न हुआ वे सब कपड़े क्यों बेच रहे हैं! कुछ लगाव होगा नग्नता में और कपड़े में, कुछ संबंध होगा, कुछ विपरीत जोड़ होगा । जैनों ने त्याग की बड़ी प्रगाढ़ धारणा बनाई है, लेकिन सारा समाज भोगी है, धन-लोलुप जैन मुनि त्याग की पराकाष्ठा लिए बैठा है और जैन श्रावक भोग की पराकाष्ठा लिए बैठा है। पर दोनों में बड़ा मेल है। दोनों एक-दूसरे को सम्हाले हुए हैं। स्त्री विपरीत में आकर्षण होता है, इसे खयाल रखना। इसलिए तो पुरुष स्त्री में आकर्षित होता है, पुरुष में आकर्षित होती है। विपरीत में आकर्षण होता है। अपने ही जैसे व्यक्ति में आकर्षण थोड़े ही होता है, क्योंकि वह तो प्रतिछबि मालूम होती है, तुम्हारी ही कापी मालूम होती है। अपने से विपरीत में बुलावा होता है, चुनौती होती है कि यह तो रह कर देख लिए, भोगी तो होकर देख लिया, अब त्यागी रहना बच गया है। तो उसमें आकर्षण है। जो हम हैं, उसमें तो रस नहीं मिल रहा है - तो जो हम नहीं हुए अब तक जो हमसे बिलकुल विपरीत है शायद रस वहां हो । आज हिम्मत नहीं है, जुटाएंगे हिम्मत, धीरे - धीरे चलेंगे, पहले अणुव्रत लेंगे, फिर महाव्रत लेंगे, फिर ऐसा धीरे- धीरे किसी दिन दिगबरत्व को उपलब्ध होंगे। और एकदम से तो कोई होता नहीं। क्रमशः जन्मों-जन्मों में यात्रा कर-करके हम भी कभी हो जाएंगे। भोगी के मन में भी त्याग का सपना है और त्यागी के मन में भी भोग का स्वर्ग है। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जनक जैसे व्यक्ति को पहचानना बड़ा कठिन हो जाता है। क्योंकि वे त्यागी हैं वे भोगी । वे कुछ ऐसी भाषा बोलते हैं जो न त्यागी को समझ में आती है न भोगी को समझ में आती है। इसलिए जनक अष्टावक्र के ये महामूल्यवान सूत्र ऐसे ही पड़े रह गए इन्हें कभी भारत अपने सिर पर न उठाया; इन्हें लेकर भारत कभी नाचा नहीं। क्योंकि यह भाषा ही बहुत अपरिचित हो गई। न भोगी समझा इस भाषा कों-क्योंकि जनक को अगर भोगी देखने जाएगा तो कहेगा, इनमें रखा क्या है, ये हमारे ही जैसे महल में रहते हैं, बल्कि हमसे बेहतर महल में रहते हैं; राज्य है, सब कुछ है। तो फर्क क्या है!' तो भोगी नमस्कार नहीं करेगा। और त्यागी तो करेगा कैसे! त्यागी तो भ के विरोध में खड़ा है। वह कहेगा, यही तो पाप है। जनक को कौन समझेगा ! ऐसा उल्लेख है कि कबीर का एक बेटा था : कमाल। कमाल का ही रहा होगा, इसलिए कबीर ने उसे नाम 'कमाल' दिया था। और कबीर जब नाम दें तो ऐसे ही नाम नहीं दे देते; कुछ सोच कर दिया होगा। लेकिन कमाल के संबंध में और शिष्यों को बड़ी ईर्ष्या थी। एक तो वह कबीर का बेटा था, तो उसकी प्रतिष्ठा थी, इसलिए शिष्यों को ईर्ष्या भी थी। और यह डर भी था कि कहीं आखिर में वही उत्तराधिकारी न हो जाए। इसलिए उस बेटे को खिसकाने के लिए उसके विरोध में हजार बातें लाने में लगे रहते थे।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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