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________________ हो गया। 'का वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल ।' और यह कहा गया है बड़ी प्रशंसा में! वंश तो तभी समाप्त होता है जब कोई कमाल जैसा बेटा पैदा हो, नहीं तो श्रृंखला जारी रहती है। फिर कमाल का कोई बेटा नहीं पैदा हुआ। इसलिए वंश उजड़ गया। जीसस का कोई बेटा पैदा नहीं हुआ। बाइबिल में कहानी है कि अदम और हब्बा को ईश्वर ने बनाया, फिर उनका फलां बेटा हुआ, फिर फला बेटा हुआ, फिर फलां बेटा हुआ - ऐसी चलती है वंशावली । फिर मरियम और जोसेफ को जीसस पैदा हुआ और फिर और कोई नहीं जीसस पर आ कर सब बात रुक गई। 'बूड़ा वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल!' वे जो एक के बाद एक पैदा होते रहे, श्रृंखला जारी रही, जीसस पर आ कर झटके से श्रृंखला टूट गयी । शिखर आ गया। आखिरी ऊंचाई आ गयी। अब और आगे जाने को कोई जगह न रही। यात्रा समाप्त हो गयी, मंजिल आ गयी। वही अर्थ है कबीर का 'जूड़ा वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल ।' किसी बड़े अहोभाव में कहा है। लेकिन शिष्यों ने उसका मतलब पकड़ा कि कबीर ने नाराजगी में कहा है। नाराजगी में तो कबीर कह नहीं सकते। कमाल को अगर कबीर न समझेंगे तो और कौन समझेगा ! उन्हीं का बेटा था - उनसे भी दो कदम आगे गया। कबीर का तो वंश थोड़ा चला, लेकिन कमाल का कोई वंश नहीं। आ गयी आखिरी ऊंचाई ! लेकिन ऐसे व्यक्ति को समझना मुश्किल हो जाता है; क्योंकि वह भोगी को भोगी जैसा लगता है, त्यागी को त्यागी जैसा नहीं लगता। उसका त्याग परम है - जहां भोग और त्याग दोनों छूट जाते हैं । ' त्याग और ग्रहण दोनों को छोड़ कर मैं सुखपूर्वक स्थित हूं' और जब तक तुम एक को पकड़ोगे, दुख में रहोगे । जिसने पकड़ा, दुखी हुआ। इसलिए कृध्यर्ग्रित बार-बार कहते हैं च्चॉयसलेस अवेयरनेस चुनना मत ! चुनना ही मत! चुनाव-रहित हो जाना। इसको चुन लूं उसके विपरीत, ऐसा मत करना, अन्यथा उलझे ही रहोगे। यही तो उलझाव है। तुम इन दोनों के साक्षी हो जाना - चुनना मत। अचुनाव में अतिक्रमण हो जाता है। 'कहीं तो शरीर का दुख है, कहीं वाणी दुखी है और कहीं मन दुखी होता है। इसलिए तीनों को त्याग कर मैं पुरुषार्थ में, आत्मानंद में सुखपूर्वक स्थित हां' कुत्रापि खेदः कायस्थ जिह्वा कुत्रापि खिद्यते । मनः कुत्रापि तत्यक्ला पुरुषार्थे स्थितः सुखम्। कुत्र अपि कायस्थ खेद............. । दुख हैं शरीर कें-हजार दुख हैं। शरीर में सब बीमारियां छिपी पड़ी हैं। समय पा कर कोई बीमारी प्रगट हो जाती है, लेकिन पड़ी तो होती ही है भीतर। सब बीमारियां ले कर हम पैदा हुए हैं। शरीर को तो व्याधि कहा है ज्ञानियों ने। सब व्याधियों की जड़ वहां है, क्योंकि शरीर पहली व्याधि है। इसे समझना | शरीर में होना ही व्याधि में होना है। शरीर में होना उपाधि में होना है। उलझ गए-फिर और उलझनें तो अपने आप आती चली जाती हैं। तो शरीर का दुख है कहीं। कहीं कोई दुखी है बीमारी से, कहीं कोई दुखी है बुढ़ापे से, कहीं कोई दुखी है कि कुरूप है। और मजा यह है कि
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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