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________________ लोग! अरबों -खरबों लोग हमारे साथ रहे हैं, गलत हो सकते हैं? नहीं, कैसे गलत हो सकते हैं? इतने लोग धोखा खा सकते हैं? एकाध को धोखा दे लो, दो -चार को धोखा दे लो, अरबों-खरबों को धोखा दे पाओगे? बात कुछ और ही है। भीड़ के पास सत्य कभी नहीं होता। सत्य तो कभी विरलों के पास होता है। भीड़ तो सदा असत्य से जीती है। भीड़ सत्य चाहती ही नहीं। भीड़ के लिए असत्य बड़ा शुभ है, सुंदर है। असत्य भीड़ को बदलने से बचाता है, सुरक्षा करता है, तुम जैसे हो, ठीक हो। सत्य तो तिलमिलाता है। सत्य तो जलाता है, तोड़ता है, काटता है, खंड-खंड कर देगा। तुम जैसे हो, इसमें क्रांति उमगेगी। तो सत्य तो भीड़ कभी मानती नहीं। सत्य तो कभी विरले लोगों के पास होता है, कभी एकाध......। लेकिन तब वह नया होता है-नए होने के कारण समादृत नहीं होता। जब तक पुराना होगा, तब तक असत्य हो जाएगा। समय की धार सत्य को असत्य कर जाती है। तो पहले तो तुम ठीक से समझ लेना कि पुराने को तुम पकड़े क्यों हो? पुराने का ठीक विश्लेषण कर लेना। जैसे-जैसे विश्लेषण स्पष्ट होने लगेगा, अपने- आप पुराना गिरेगा। तुम तैयार हो जाओगे नए के स्वागत को। क्योंकि नया जीवन है, नया परमात्मा है। नया होना ही सत्य का ढंग है। सत्य चिरनवीन है। पुराने शब्द होते हैं, सत्य नहीं। पुराने शास्त्र हो जाते हैं, सत्य का अनुभव नहीं, समाधि नहीं। और जो सत्य के साथ होना चाहे उसे थोड़ी हिम्मत तो चाहिए, साहस तो चाहिए। उसे भीड़ से अन्यथा चलना होगा। लोग हंसेंगे। लोग आलोचना करेंगे। लोग मजाक उड़ाके। लोग मजाक उड़ाते ही इसीलिए हैं, ताकि तुम्हारी हिम्मत भी न हो नए के साथ जाने की। और लोग मजाक इसलिए भी उड़ाते हैं, आलोचना इसलिए भी करते हैं; क्योंकि वे खुद भी डरे हुए हैं कि अगर इस तरह सुविधा दी लोगों को जाने की तो उनका पुराना ढांचा बिखर जाएगा। पुराने ढांचे के साथ बड़े न्यस्त स्वार्थ जुड़ गए हैं। नए के साथ तुम अकेले हो जाओगे, अकेले होकर डर लगेगा, तुम कंपोगे। अब कोई व्यक्ति मेरा संन्यासी हो जाता है तो वह खतरा ले रहा है। सिर्फ हिम्मतवर लोग, दुस्साहसी लोग ही खतरा ले सकते हैं। क्योंकि सब तरह की अड़चन उसे आएगी; जहां जाएगा, मुश्किल में पड़ेगा। एक मित्र ने संन्यास लिया। उनकी पत्नी मेरे पास आई। उसने कहा कि इनको अगर संन्यासी ही होना है तो पुराने ढब के हो जाएं, कम से कम आदर-प्रतिष्ठा तो रहेगी। वह घर से छोड़ने को राजी है पति को, मगर कहती है कि 'कम से कम पुराने ढंग के हो जाएं, चले जाएं छोड़ कर, मैं बच्चों को सम्हाल लूंगी। मगर यह आपका संन्यास तो बड़ा खतरनाक है।' मेरे संन्यास में पति घर छोड़ कर नहीं जा रहा है; पत्नी की फिक्र रखेगा, नौकरी जारी रखेगा, बच्चों की चिंता करेगा। तो भी पत्नी कहती है : नहीं! कि यह नहीं चलेगा। ये पुराने ढंग के हो जाएं, जाएं हिमालय! उससे हम राजी हैं, कम से कम लोग यह तो कहेंगे कि संन्यास लिया, समादर तो मिलेगा। अभी तो लोग कहते हैं, ये भ्रष्ट हो गए।'
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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