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________________ मेरी बातों पर खूब धूल जम चुकी होगी और पंडित-पुजारियों ने उसके सब अर्थ विकृत कर दिए होंगे। तब तुम भीड़ को पाओगे। लेकिन तब किसी अर्थ की न रह जाएगी। सत्य को बार-बार नया -नया आना पड़ता है, क्योंकि पंडित-पुजारी उसको सदा व्यर्थ कर देते हैं, खराब कर देते हैं। सत्य जब भी आता है तो कुछ लोग उसके दावेदार हो जाते हैं और उस दावे का लाभ उठाने लगते हैं। यह स्वाभाविक है। यह होता रहा है। ऐसा होता रहेगा। इसे बदलने का कोई उपाय नहीं। तुम ही समझ लो, बस इतना काफी है। पुराने के साथ भीड़ है, पुराने के साथ साख है। अब मेरी बात तो नई है। अगर तुम वेद की बात मानोगे तो पांच हजार साल पुरानी है। और अगर तुम वेद के पंडित से पूछो तो वह कहता है, नब्बे हजार साल पुरानी है। इसलिए सभी धर्मगुरु अपने धर्म को बहुत पुराना सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि जितनी पुरानी दूकान, उतनी ही पुरानी साख। और जब इतने दिन तक दूकान चलती रही तो कुछ होगा, मालमत्ता कुछ होगा, नहीं तो कैसे चलती? कोई ऐसे कोरे दूकान चलती है, बिना बेचे कहीं कुछ इतने दिन तक चल सकती है? कहीं कुछ होगा सत्व! । इसलिए हर धर्म सिद्ध करता है कि हमारी दूकान पुरानी है। जैन कहते हैं कि हमारा धर्म हिंदुओं से भी ज्यादा पुराना है। वे भी प्रमाण जुटाते हैं कि ऋग्वेद में उनके प्रथम तीर्थंकर का नाम है, आदिनाथ का, ऋषभदेव का नाम है। निश्चित है कि ऋग्वेद ऋषभदेव से पुराना नहीं। एक बात तो पक्की हो गई। और नाम बड़े आदर से लिया गया है। तो जैन कहते हैं कि इतना आदर समसामयिक व्यक्ति के प्रति होता ही नहीं। इतने आदर से तो नाम तभी लिया जाता है जब ऋषभदेव को हजार दो हजार साल बीत गए हों। आदमी ऐसे मरे -मराए हैं कि मरों को ही पूजते हैं। तो दो हजार साल, तीन हजार साल पुराना नाम होना चाहिए ऋग्वेद से। ऋग्वेद में उल्लेख है तो ऋषभदेव का नाम तीन हजार साल पुराना कम से कम होना चाहिए। तब कहीं इतना आदर लोग कर पाते हैं। जिंदा का कहीं कोई आदर करता है? जिंदा से तो लोग डरते हैं। जिंदा से लोग बचते हैं। आदर की बात दूर, निंदा करते हैं, विरोध करते हैं। ही, समय बीत जाता है, तब पूजा शुरू हो जाती है। ___ तो जैन सिद्ध करते हैं, उनका धर्म पुराना है। हिंदू सिद्ध करते हैं, उनका धर्म पुराना है। सब अपनी-अपनी तरकीब खोजते हैं कि दूकान हमारी बड़ी पुरानी है, इतने लंबे दिनों से चली आई है! क्यों? क्योंकि पुराने के साथ प्रतिष्ठा हो जाती है। जितनी लंबी परंपरा उतनी प्रतिष्ठित हो जाती है। फिर यह सवाल उठने लगता है कि जब इतने करोड़-करोड़ लोगों ने इतने हजारों-हजारों वर्ष तक माना है कुछ, तो सच होगा ही। भीड़...... भीड़ दो तरह से जुटाई जाती है। एक तो भीड़ राजनीतिज्ञ जुटाता है। राजनीतिज्ञ भीड़ जुटाता है समसामयिक, कटेम्परेरी; जैसे अभी कार्टर जीत गया, फोर्ड हार गए, तो कार्टर ने सिद्ध कर दिया कि भीड़ मेरे साथ है, मौजूदा भीड़ मेरे साथ है, फोर्ड के साथ नहीं। यह समसामयिक हिसाब है राजनीति का। धर्म भी भीड़ जुटाते हैं, लेकिन दूसरे ढंग से-वे जुटाते हैं पीछे की तरफ: पांच हजार साल से भीड़ हमारे साथ है; जोड़ो, कितने लोग! पचास हजार साल से भीड़ हमारे साथ है; जोड़ो, कितने
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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