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________________ मालिक नहीं है। इसमें देर नहीं होती; घंटी रुकी कि मैंने कोड़ा मारा। तो बैल चलता रहता है, घंटी बजती रहती है। आंख पर पट्टियां बांध दी हैं। तो बैल को कुछ दिखाई तो पड़ता नहीं कि मालिक कहां है।' तर्कशास्त्री तर्कशास्त्री था। उसने कहा ' और ऐसा भी तो हो सकता है कि बैल खड़ा हो जाए और सिर हिला कर घंटी बजाए । ' उस तेली ने कहा: 'महाराज, जोर से मत बोलो, बैल न सुन ले! तो और यह कहां की झंझट आप आ गए! अभी तक बैल ने ऐसा किया नहीं। धीरे बोलो! और दुबारा इस तरफ इस तरह की बात मत करना।' जिनके तुम बैल हो- कोई हिंदू कोई मुसलमान, कोई ईसाई, कोई जैन, कोई बौद्ध; जिन पंडित-पुरोहितो के तुम बैल हो, जिन्होंने तुम्हारे गले में घंटी बांधी है - वे तुम्हें सुनने न देंगे नए की बात। वे अटकाव डालेंगे। उन्होंने तुम्हारी आंख पर पट्टिया बांधी हैं। उन्होंने सब भांति इस तरह इंतजाम किया है कि तुम अंधे की तरह जीयो और अंधे की तरह मर जाओ। अगर तुम्हें यह सत्य दिखाई पड़ गया, तो ही नए का स्वागत संभव है। सत्य नये और पुराने का कोई संघर्ष नहीं है- सत्य और असत्य का संघर्ष है। असत्य अगर तुम्हारे जीवन में साफ-साफ दिखाई पड़ गया कि असत्य है, फिर तुम सत्य के लिए द्वार खोल कर, बाहें फैला कर आलिंगन करने को तत्पर हो जाओगे। हां, बहुत दिन हो गए घर छोड़े अच्छा था मन का अवसन्न रहना भीतर - भीतर जलना, किसी से न कहना पर अब बहुत ठुकरा लिए पराई गलियों के अनजान रोड़े नहीं जानता कब कौन संयोग ये डगमग भटकते पग फिर इधर मोडे या न मोडे पर हां, मानता हूं कि जब तक पहचानता हूं कि बहुत दिन हो गए घर छोड़े। अगर तुम्हें इतनी स्मृति आने लगे कि घर छोड़े बहुत दिन हो गए, भटक लिए बहुत, चल लिए बहुत, घर मिलता नही - तो शायद नए स्वर, सत्य का नया रूपांतरण तुम्हारे लिए आकर्षण बन जाए। स्वभावतः पुराने के साथ सुविधा है, क्योंकि पुराने के साथ भीड़ है। नए के साथ सुविधा नहीं है, क्योंकि नए के साथ भीड़ कभी नहीं होती । जब बुद्ध थे तो भीड़ उनके साथ न थी; अब भीड़ उनके साथ है। अभी मैं हूं तो भीड़ मेरे साथ नहीं है। दो हजार साल बाद तुम आना और देखना, भीड़ तुम मेरे साथ पाओगे; लेकिन तब वह बेकार होगी, तब मैं पुराना हो चुका होऊंगा। तब दो हजार साल में
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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