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________________ सपने ठहरते हैं? राज्यं सताः कलत्राणि शरीराणि सुखानि च । संसक्तस्यापि नष्टानि तव जन्मनि जन्मनि ।। कितने जन्मों से जनक तू ऐसी ही चीजों के बीच में रहा है! हर बार तूने आसक्ति की ! हर बार तूने चीजों से 'मेरा' संबंध बनाया-मेरी हैं - फिर छूट - छूट गईं। मौत आई और सब संबंध तोड़ गई, सब विच्छिन्न कर गई। 'अर्थ, काम और सुकृत कर्म बहुत हो चुके। इनसे भी संसार रूपी जंगल में मन विश्रांति को नहीं प्राप्त हुआ।' सुनो अर्थ, काम, सुकृत कर्म बहुत हो चुके तू सब कर चुका, धन भी खूब कमा चुका, भोग भी खूब कर चुका ययाति की कथा है उपनिषदों में, कि जब वह मरने को हुआ, सौ साल का हो कर मौत आई तो वह घबड़ा गया। उसने कहा, यह तो जल्दी आ गई। अभी तो मैं सौ ही साल का हूं। अभी तो मैं भोग भी नहीं पाया। उसके सौ बेटे थे, सैकड़ों रानियां थीं। उसने अपने बेटों से कहा कि ऐसा करो, मुझ के बाप के लिए इतना तो करो, तुममें से कोई मर जाए ! पुराने दिनों की कहानियां हैं। उन दिनों नियम इतने सख्त न रहे होंगे। परमात्मा सदय था। भी कहा कि ठीक है, का आदमी है, छोड़ देते हैं; लेकिन किसी को तो मुझे ले जाना ही होगा, कोई भी राजी हो जाए। मौत ने सोचा, कौन राजी होगा ! बड़े बेटे तो राजी न हुए। कोई सत्तर साल के थे, कोई तो अस्सी साल के हो रहे थे। वे भी जीवन देख चुके थे, अनुभव कर चुके थे, मगर, फिर भी रस छूटा न था। छोटा बेटा खड़ा हो गया। उसने कहा कि मुझे ले चलो। वह तो अभी पंद्रह सोलह साल का ही था। मौत ने कहा, नासमझ, तेरे और निन्यानबे भाई हैं, वे तुझसे उम्र में बड़े हैं। उनमें से कोई जाता तो समझ में आता। अस्सी साल के हैं - वे खुद भी तेरे बाप जितने बूढ़े हो रहे हैं, वे नहीं जाते। तेरा बाप खुद सौ साल का है, उसे खुद जाना चाहिए! वह किसी को भेजने को राजी है, कोई बेटा चला जाए तो तैयार है। तू क्यों मरता है? उस बेटे ने कहा, यही देख कर कि सौ साल के हो कर भी पिता को कुछ न मिला, तो सौ साल अगर मैं जी भी लिया तो क्या पाऊंगा? यही देख कर कि अस्सी साल, सत्तर, साठ साल के मेरे भाई हैं, इनको अभी तक कुछ नहीं मिला, तो रह कर भी क्या सार है? मैं तैयार हूं। बड़ा अभूतपूर्व व्यक्ति रहा होगा वह बेटा । मौत उसे ले गई। राजा सौ साल जीया। उस बेटे की उम्र उसे लग गई। ऐसा कहते हैं कई बार हुआ-दस बार हुआ हर बार मौत आई और हर बार ययाति ने कहा : अभी. अभी तो मैं भोग ही नहीं पाया। फिर किसी बेटे को भेजा, फिर किसी बेटे को भेजा। जब वह हजार साल का हो गया, मौत फिर आई। फिर ययाति को भी शर्म लगी। उसने कहा कि क्षमा करो,
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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