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________________ अब तो एक बात समझ में आ गई कि एक हजार साल क्या एक करोड़ साल भी जीऊं, तो भी कुछ नहीं होगा। कुछ यहां होता ही नहीं। समय का कोई सवाल नहीं है। वासना भरती ही नहीं, दुमूर है। अष्टावक्र कहते हैं जनक को. अर्थ, काम, सब तू कर चुका और ऐसा ही नहीं, सुकृत कर्म भी बहुत हो चुके, शुभ कर्म भी तू बहुत कर चुका पुण्य भी खूब कर चुका है उनसे भी कुछ भी नहीं हुआ । 'इनसे भी संसार रूपी जंगल में मन विश्रांति को प्राप्त नहीं हुआ। ' न तो बुरे कर्म से विश्रांति मिलती, न अच्छे कर्म से विश्रांति मिलती । कर्म से विश्रांति मिलती ही नहीं- अकर्म से मिलती है। क्योंकि कर्म का तो अर्थ ही है : अभी गति जारी है, भाग-दौड़ जारी है, आपाधापी जारी है। अकर्म का अर्थ है : बैठ गए, शांत हो गए, विराम में आ गए, पूर्ण विराम लगा दिया! अब सिर्फ साक्षी रहे, कर्ता न रहे। अर्थेन कामेन सुकृतेन कर्मणा अपि अलम्! बहुत हो चुका सब तू कर चुका! तथा अपि संसार कातारे मनः न विश्रांतम् अभूत। फिर भी इस जंगल में, इस उपद्रव में, इस उत्पात - रूपी संसार में मन को जरा भी विश्रांति का कोई क्षण नहीं मिला। तो अब जाग- अब करने से जाग ! 'कितने जन्मों तक तूने क्या शरीर, मन और वाणी से दुखपूर्ण और श्रमपूर्ण कर्म नहीं किए हैं? अब तो उपराम कर। ' अब विश्रांति कर! जिसको झेन फकीर झाझेन कहते हैं। झाझेन का अर्थ होता है; बस बैठे रहना और देखते रहना; उपशम ! यह ध्यान की परम परिभाषा है। ध्यान कोई कृत्य नहीं है। ध्यान का तुम्हारे करने से कुछ संबंध नहीं है। ध्यान का अर्थ है बिना किसी विरोध के, बिना चुपचाप देखना ! : साक्षी - भाव। जो हो रहा है उसे चुपचाप देखना ! बिना किसी लगांव के किसी पक्षपात के-न इस तरफ, न उस तरफ निष्पक्ष उदासीन - बस कृतं न कति जन्मानि कायेन मनसा गिरा । दुखमायासद कर्म तदद्यान्दुपरम्यताम् ।। तत अद्यापि उपरम्यताम्। अब तो उपशम कर! अब तो बैठ! लोग अधर्म में उलझे हैं। किसी तरह अधर्म से छूटते हैं तो धर्म में उलझ जाते हैं-मगर उलझन नहीं जाती। लोग पाप कर रहे हैं; किसी तरह पाप से छूटते, तो पुण्य में उलझ जाते हैं- लेकिन उलझन नहीं जाती। कुछ तो करेंगे ही। अगर गाली बक रहे हैं; किसी तरह उनको समझा-बुझा कर राजी करो, मत बको, तो वे कहते हैं : अब हम जाप करेंगे, भजन करेंगे, मगर उपद्रव तो जारी रखेंगे ! तुमने देखा, लोग लाऊडस्पीकर लगा कर अखंड कीर्तन करने लगते हैं। कीरतन को कीर्तन कहते हैं! अब अखंड कीर्तन तुम कर रहे हो, पूर मोहल्ले को सोने नहीं देते! बच्चों की परीक्षा है, उनकी परीक्षा
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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