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________________ असत्य से कैसे सत्य के संबंध हो सकते हैं? रात तुमने एक सपना देखा कि कोहिनूर तुम्हारे सामने रखा है-लड़ते रहें पाकिस्तान, हिंदुस्तान और सब, लेकिन कोहिनूर तुम्हारे सपने में सामने रखा है। कोहिनूर देखते ही तुम्हारा मन हुआ उठा रख लूं अपना बना लूं छिपा लूं कोहिनूर देखा - वह तो झूठा है, सपने का है ! अब तुम्हारे मन में यह जो भाव उठा-उठा लूं संभाल लूं रख लूं कोई देख नले, किसी को पता न चल जाए यह जो भाव उठा, यह कैसे सच हो सकता है? जिसके प्रति उठा है वही असत है, तो जो भाव उठा है वह सत नहीं हो सकता है। अष्टावक्र कहते हैं अविद्या अपि न किचित - और ये जो अविद्या के संबंध हैं, ये भी असार हैं। तथा अपि ते का बुभुत्सा- फिर तू और अब क्या जानना चाहता है? बस, जानना पूरा हो गया । इतना ही जानना है । इति ज्ञान ! संसार है भागता हुआ गच्छतीति जगत! परिवर्तन, तरंगों से भरा हुआ और आत्मा है शाश्वत, निस्तरंग, असंग। और दोनों के बीच में जो संबंध हैं, वे संबंध सब झूठे हैं, अज्ञान के हैं, अविद्या के हैं। कोई कहता है, मेरा बेटा, कोई कहता है, मेरी पत्नी, कोई कहता, मेरा मकान! मैं सुना है, एक धनपति के मकान में आग लग गई। धू-धू करके मकान जल रहा है, वह छाती पीट कर रो रहा है। बड़ी भीड़ लग गई है। एक आदमी ने आ कर कहा, 'तुम नाहक रो रहे हो। मुझे पक्का पता है, तुम्हारे बेटे ने कल ही शाम यह मकान बेच दिया है। ' ऐसा सुनते ही धनपति एकदम प्रसन्न हो गया और उसने कहा सच ! मुझे तो पता ही नहीं। बेटे ने कुछ खबर न दी, बेटा दूसरे गांव गया है। मगर अब अब भी मकान जल रहा है, धू-धू करके जल रहा है, और लपटें बड़ी हो गई हैं; लेकिन अब आंसू सूख गए वह बड़ा प्रसन्न है। तभी बेटा वापिस आया भागा हुआ और उसने कहा कि 'क्या खड़े हो? बात उठी थी बेचने की, लेकिन सौदा अभी हुआ नहीं था। फिर रोने लगा, फिर छाती पीटने लगा। अब फिर अपना मकान ! मकान अभी वही का वही है, अब भी जल रहा है। लेकिन बीच में थोड़ी देर को 'मेरे' का संबंध नहीं रहा। थोड़ी देर को भी 'मेरे' का संबंध छूट गया। सभी स्थिति वही की वही थी, कुछ फर्क न पड़ा था। यह आदमी वैसा का वैसा, यह मकान वैसा का वैसा । यह आदमी कोई बुद्ध नहीं हो गया था। यह बिलकुल वैसे का वैसा ही आदमी है, मकान भी जल रहा था; सिर्फ एक संबंध बीच से खो गया था - 'मेरा' । बस, उस संबंध के खो जाने से दुख खो गया। फिर संबंध लौट आया, फिर दुख हो गया। तुम जरा गौर करना। तुम्हारा दुख असत के साथ तुम्हारे बनाए हुए संबंधों से पैदा होता है। तुम्हारा सुख, असत के साथ तुम्हारे संबंध छूट जाए, उनसे घटित होता है। 'तेरे राज्य, पुत्र-पुत्रियां, शरीर और सुख जन्म-जन्म में नष्ट हुए हैं यद्यपि तू उनसे आसक्त था। ' अष्टावक्र कहते हैं. लौट कर पीछे देख। जो तेरे पास आज है ऐसा कई बार तेरे पास था। ऐसे राज्य कई बार हुए। ऐसी पत्नियां ऐसे पुत्र कई बार हुए। बहुत बहुत धन कई बार तेरे पास था। और हर बार तू आसक्त था। लेकिन तेरी आसक्ति से कुछ रुका नहीं आया और गया। आसक्तियों से कहीं
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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