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________________ वही गुरु है! गुरु तो भीतर है। बाहर का गुरु तो केवल प्रतीक रूप है। जो तुम्हारे भीतर घटना है, वह किसी में घट गया है, बस। लेकिन आत्यंतिक घटना तुम्हारे भीतर घटती है। बाहर के गरु से संकेत ले लेना, लेकिन बाहर के गरु को जंजीर मत बना लेना। बाहर का गुरु तुम्हारा कारागृह बन जाए, इससे सावधान रहना। जरथुस्त्र का बड़ा बहुमूल्य वचन है। जब जरथुस्त्र अपने शिष्यों को छोड़ कर बाहर जाने लगा विलीन होने को अपनी अंतिम समाधि में, तो उसने कहा, 'अब आखिरी सूत्र. जरथुस्त्र से सावधान रहना! आखिरी सूत्र जरथुस्त्र से सावधान रहना। ' बस, इतना कह कर वह पहाडों में चला गया। 'बिवेयर ऑफ जरथुस्त्रा!' सब समझाया, आखिर में यह समझाया कि अब मुझसे सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि तुम मुझसे बंध जाओ! कहीं तुम्हारी आसक्ति मुझ पर न टिक जाए! नहीं तो फिर चूक हो गई। दर्पण में तुम्हारा चेहरा दिखाई पड़ता है। इससे तुम यह मत समझ लेना कि दर्पण में तुम्हारा चेहरा है, नहीं तो पागल हो जाओगे। फिर दर्पण लिए फिरोगे कि अब दर्पण न ले जाएंगे तो चेहरा घर ही छूट जाएगा। मुल्ला नसरुद्दीन एक धनपति के घर मस्जिद के लिए कुछ दान मांगने गया। जैसे कि धनपति होते हैं, धनपति ने ऐसा खिड़की से झांक कर देखा, देखा कि मुल्ला आया है, जरूर कुछ दान मांगने आया होगा। उसने अपने दरबान को कहा कि कह दो कि वे बाहर गए हैं। मुल्ला ने भी देख लिया था। उस सिर को मुल्ला भी देख चुका था खिड़की से। दरबान ने कहा कि महानुभाव, आप गलत समय आए मालिक बाहर गए हैं। तो मुल्ला ने कहा, कोई हर्जा नहीं, हम फिर आ जाएंगे। मालिक आ जाएं तो हमारी तरफ से मुफ्त एक सलाह उनको दे देना कि बाहर तो जाएं, लेकिन सिर घर न छोड़ कर जाया करें। इसमें कभी खतरा हो सकता है। अगर तुमने समझा कि दर्पण में तुम्हारा चेहरा है, तो फिर तुम्हें दर्पण को ले कर घूमना पड़ेगा; नहीं तो चेहरा घर छूट जाएगा, बिना चेहरे के तुम जाओगे। गुरु तो दर्पण है; तुम्हें तुम्हारा चेहरा पहचनवा देता है। लेकिन एक दफा पहचान आनी शुरू हो गई, तो अंततः तो अपने भीतर ही खोजना है। गुरु तो वही है जो तुम्हें तुम्हारे गुरु से मिला दे। गुरु तो वही है जो तुम्हारे भीतर के सोए गुरू को जगा दे। स्वयं में छिपा है गुरु। बाहर का गुरु तो केवल प्रतिध्वनि है तुम्हारे भीतर के गुरु की। 'जब भूत-विकारों को, देह, इंद्रिय आदि को यथार्थत: भूत-मात्र देखेगा, उसी क्षण तू बंध से मुक्त हो कर अपने स्वभाव में स्थित होगा।' पश्य भूतविकारास्ल भूतमात्रान् यथार्थतः। -जो जैसा है, जब तू उसको वैसा ही देखने लगेगा।
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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